अपने क्रोध को पालना सीख!

आज प्रधानमंत्री जी को दिल से धन्यवाद करने का मन कर रहा है। अपने ब्रह्मास्त्र से सबको चित्त कर दिया। मैंने पुराने समय में कई राजाओं के किस्से सुने हैं कि कोई राजा कितना दानवीर, प्रजावत्सल होता था और वह दिन प्रतिदिन जनता की भलाई में लगा रहता था कि प्रजा को मौका ही नहीं मिल पाता था कि उसकी किस बात पर बढ़ाई करे क्योंकि उसके द्वारा किए गए भलाई के कार्य इतने ज्यादा होते थे कि जनता बेचारी उस भलाई के बोझ से दबी रह जाती थी। किंतु वह दौर राजवंशों का था। प्रजा का शासन पर कोई जोर नहीं था तो बेचारी मन ही मन राजा को आर्शीवाद दे देती थी।
आज लोकशाही का राज है। आज लोकतंत्र में मनमोहन जी ने शायद पुराना ही तरीका अपनाया है परंतु नए ढंग से। आज के राजा ने तय किया कि जनता पर इतने अत्याचार एक साथ कर दो कि जनता समझ ही नहीं सके कि किस बात का विरोध करे। पिछले एक माह की चर्चा करें तो इस देश में सभी ओर अफरातफरी का माहौल नजर आता है चाहे वह आतंकवाद हो, नक्सलवाद हो, भाषावाद हो, महंगाई, घोटाले, कालाधन आदि आदि।
अब बेचारी जनता करे भी तो क्या? इस केन्द्र सरकार ने जनता से अभिव्यक्ति की आजादी भी छीन ली। यदि धरना प्रदर्शन भी हो तो उसका सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अब देश में जनता को मौन धारण कर लेना चाहिए और घातक फिल्म का वो डायलॉग याद करना चाहिए कि ‘‘अपने क्रोध को पालना सीख’’।
यह आक्रोश केवल एक ही दिन फटना चाहिए जब हो चुनाव में वोट डालने का दिन। शायद जनता उस दिन भारत का एक नया इतिहास लिख सके।
जय हिन्द!!!
-स्वतन्त्र शर्मा
शोधार्थी

2 thoughts on “अपने क्रोध को पालना सीख!”

  1. हम सभी भारत स्वाभिमान कॆ क्रान्तिकारी यही कार्य कर रहॆ है अपनॆ क्रॊध कॊ पालनॆ का|

  2. जन जन के मन की बात आप की लेखनी के माध्यम से जन जन तक…..

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