व्यथा एक नारी की

रश्मि जैन
रश्मि जैन
जो बेटी पिता के घर स्वछंद वातावरण में पली बढ़ी, पिता की राजकुमारी , माता की दुलारी , भाई की लाड़ली , शादी के बाद क्या बन जाती है भारतीय नारी की विवशता का चित्रण
एक छोटा सा प्रयास कहानी के माध्यम से~~~
पदमा के पिता कोई साहूकार नही थे जो अपनी बेटियों के लिए सुसम्पन्न वर खोज सकते, किसी तरह गुजर बसर हो रही थी साथ ही एक साथ जवान होती तीन- तीन बेटियों की शादी की चिंता दिन रात खाये जा रही थी। बेटियों के अच्छे भविष्य की कामना करते हुए किसी से भी परिणय की इज़ाज़त नही दे रहा था पिता का मन।
अचानक एक दिन पदमा के लिए एक ऐसे सम्पन्न परिवार से रिश्ता आया जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी ना की थी चूँकि पदमा सुन्दर बहुत थी इसीलिए रिश्ता खुद लड़के वालों की ओर से आया था सब बहुत खुश थे, रिश्ता तय हो गया पदमा और सभी की खुशियों का पारावार ना था। घर में शादी की तैयारियां होने लगी, पदमा को एक तरफ सुन्दर पति और सम्पन्न परिवार मिलने की अथाह ख़ुशी थी, तो वंही दूसरी और अपने परिवार से बिछड़ने का गम भी कम नही था। पिता का दुलार, माँ की प्यार भरी झिड़कियां, और भाई बहनो का स्नेह इन सबकी कमी ससुराल में खलेगी तो बहुत पर शायद ससुराल में प्यार मिलने की उम्मीद ये कमी पूरी कर देगी ऐसा सोच कर खुद का मन बहलाती हुई पदमा भी शादी की रस्मो को बड़े चाव से निभाती रही।
आखिर शादी होकर पदमा ससुराल पहुँच गई सासू माँ ने बड़े चाव से बहू की आरती उतार कर गृह प्रवेश कराया। छोटी बहन समान ननद और भाई जैसे देवर नई भाभी के साथ चुहलबाजी में लगे थे।पिता तुल्य ससुर ने पदमा को ढेरों आशीर्वाद दिए। ये सब देख कर पदमा भावविव्हल हो उ।ठी, इतने प्यार और सम्मान की तो पदमा ने सपने में भी कल्पना न की थी, इन सबके साथ ही पति का प्यार जो सबसे ज्यादा महत्व रखता है एक पत्नी के लिए, जिसके भरोसे वो अपना परिवार छोड़कर नए परिवार को अपनाती है, अगर वो मिल जाये तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है।अब तो जैसे पदमा मायका भूल चली थी
पदमा को तो मानो सारे जहां की खुशियाँ मिल गई । समय पंख लगा कर उड़ा जा रहा था शादी को हुए 6 महीने बीत चुके थे अचानक एक दिन पदमा की तबियत ख़राब हो गई उसे डॉक्टर को दिखाया गया तो पता चला पदमा माँ बनने वाली है अब तो पुरे परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ गई सास बहू की बलैयां ले रही थी ससुर मारे ख़ुशी के सबको खबर देने में लगे थे और ननद देवर भाभी की चुटकियां ले रहे थे आखिर वो भी तो पहली बार बुआ और चाचा बनने जा रहे थे पुरे मोहल्ले में मिठाई बंटवाई गई।पति ने भी एकांत पाकर पदमा को अपनी बाँहो में भर लिया और उसको आँखों ही आँखों में शुक्रिया कह डाला पिता बनाने के लिए। अब तो पदमा की खुशियाँ सम्हाले नही सम्हल रही थी।
अब सभी पदमा का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगे थे सारा दिन बस आराम ही आराम कोई काम नही करने दिया जाता उसको ,खाने पीने का बहुत ख्याल रखा जाता था सभी को बड़ी बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार था जब घर में शिशु की किलकारियाँ गूंजने वाली थी आखिरकार वो दिन भी आ गया पदमा को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी उसे शहर के बड़े हस्पताल में ले जाया गया जहाँ पदमा ने एक पुत्र को जन्म दिया सबकी खुशियों का कोई पारावार ना था
उस वक़्त जब पदमा को होश आया तो उसने नर्स से अपने बच्चे के बारे में पूछा तो उसे बताया गया कि उसके परिवार वाले बच्चे को घर ले गए यह सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ फिर उसे लगा उसे भी लेने कोई आता होगा ।शाम तक कोई नही आया लेने, नर्स ने आकर बताया कि उसे हास्पिटल से छुट्टी दे दी गई है अब वो अपने घर जा सकती है अभी पदमा बेहद कमजोर थी फिर भी जैसे तैसे वो अपने घर पहुँची वहां का नज़ारा देखकर उसके सर पर मानो आसमान टूट पड़ा घर में खूब चहल पहल थी खुशियां मनाई जा रही थी उसे घर के अंदर नही आने दिया गया और दरवाजे से ही वापिस जाने का आदेश दे दिया सुन कर पदमा के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई वो बर्दास्त ना कर सकी और बेहोश होकर वही दरवाजे के पास ही गिर गई
कुछ देर बाद होश में आने पर उसने अपना बच्चा माँगा लेकिन उसे बच्चा देने से मना कर दिया गया। वो एक निरीह पशु की भांति कातर दृष्टि से अपने पति की ओर देखने लगी जो कल तक उस पर जान छिड़कता था आज उसने बड़ी बेरहमी से अपना मुँह दूसरी ओर घुमा लिया तभी उसने एक खूबसूरत सी औरत को आते हुए देखा उसकी गोद में एक नवजात शिशु था, पदमा ने फिर से अपना बच्चा माँगा तो इस बार जो उसे बताया गया उसे सुन कर उसके होश उड़ गए मानो उसके शरीर से सारा लहू निचोड़ लिया गया हो।
पदमा को बताया गया उसे इस घर में सिर्फ वारिस पैदा करने के लिए लाया गया था उसका पति पहले से ही शादी शुदा था चूँकि पहली पत्नी संतान पैदा करने में असमर्थ थी तो एक योजना बनाई गई और उस योजना को अंजाम देने के लिए मोहरा बनी बेचारी गरीब पदमा।पिता ने जैसे तैसे पदमा की शादी कर सुख की साँस ली थी क्या मालूम था उस गरीब पिता को कि वो अपनी लाड़ली बेटी को सुख सागर में नही, जहन्नुम की आग में जलने के लिए विदा कर रहा है।
किसी ने भी पदमा की एक ना सुनी, उसे घर से जबरन निकाल दिया गया। बेचारी पदमा, जिसके पास अब ना घर था, ना पति और ना बच्चा।कहाँ जाये गी, क्या करे गी। सैंकड़ो सवाल उसे घेरे हुए थे बच्चे को खो देने की टीस, पति की बेरुखी जो उस पर जान छिड़कता था अचानक बदल गया था। चलते चलते उसके कदमो ने उसका साथ छोड़ दिया था पदमा वंही सड़क पर गिर गई उसे होश न था मारे कमजोरी के बार बार उसे चक्कर आ रहे थे वो कुछ देर वही पड़ी रही किसी ने उसकी ओर ध्यान ना दिया।
जब उसे होश आया तो खुद को कुछ महिलाओँ से घिरा हुआ पाया, उन्होंने पदमा को बताया कि वो सब एक NGO यानि एक ऐसी संस्था चलाती है जिसका उदेश्य पीड़ित महिलाओँ की मदद करना और उनका हक दिलवाना है, पदमा ने उनके पूछने पर उन्हेँ सारी आपबीती बता दी NGO की ओर से उसे भरपूर मदद मिली , उसे उसका हक मिल गया पति जिसने एक पत्नी के होते हुए पदमा से धोखे से शादी कर ली थी और पुरा परिवार जो इस साजिश में बराबर का भागीदार था सभी को लंबी जेल हुई। पदमा को उसका बेटा मिल गया था।
मुआवजे के रूप में मिली राशि से पदमा ने एक छोटा सा गृह उद्योग शुरू किया और अपने जैसी कई बेसहारा महिलाओ का सहारा बन गई। पदमा अब सबकी पदमा दीदी बनकर अपने बेटे के साथ समाज में इज्ज़त की ज़िन्दगी जी रही है गर्व से सर ऊँचा करके…..
तभी तो कहा गया है~~
*नारी तुम श्रद्धा हो, शक्ति हो, जगजननी हो*
“नारी तुम कभी ना हारी………..
………..एक नारी दस पर भारी”

– लेखिका रश्मि जैन
नई दिल्ली

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