कांग्रेस और उत्तरप्रदेश चुनाव का महाभारत

अनुपम शर्मा
अनुपम शर्मा
कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश के महाभारत का बिगुल फूंक दिया है। ये वक़्त का तक़ाज़ा कहिए, या समय का पहिया कांग्रेस अपने सबसे अनुभवी रणनीतिकारों को इस लड़ाई मे उतारी है| 2012 के अन्ना हज़ारे आंदोलन के बाद, पहली बार कांग्रेस इतनी मज़बूती से एक सोची-समझी राजनीति के तहत कोई चुनाव लड़ने उतरी है| उत्तर प्रदेश और बिहार पिछले तीन दशकों से कांग्रेस के पहुँच से दूर हो गयी है| कांग्रेस की रणनीति मे उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे कमजोर कड़ी है|
शायद 2017 के चुनाव मे ये उनके लिए सबसे मददगार साबित हो| कांग्रेस के लिए खोने के लिए कुछ भी नही है| यहाँ जो भी उनके खाते मे आएगा वो मुनाफ़ा है| इसलिए कांग्रेस पहली बार 1989 के बाद अपने पुराने अंदाज़ मे चुनाव लड़ रही है उत्तरप्रदेश में| कांग्रेस ये भली-भाती जानती है की किसी एक नेता के भरोसे उत्तरप्रदेश नही जीता जा सकता है| उन्हें नेताओं का समूह चाहिए जिसमे तज़ुर्बे के अलावा युवा चेहरा भी हो| गुलाम नबी आज़ाद, शीला दीक्षित, राज बब्बर, संजय सिह, प्रमोद तिवारी के साथ उन्होने आर पी एन सिंह, जितिन प्रसाद, राजेश मिश्र, इमरान मसूद, चौधरी विजेंद्र सिंह जैसे युवा और Next Generation के नेताओ का एक संतुलित टीम गठन किया है|
यदि भारतीय क्रिकेट टीम से तुलना की जाए इस टीम की तो अभी तक इस टीम मे मध्यक्रम के बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ हैं| इसमें दो नाम औपचारिक रूप से जुड़ना बाकी है- राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी| जो कांग्रेस के शीर्ष क्रम को संभालेगे| उत्तरप्रदेश के चुनावी दंगल मे ये एक ऐसी टीम उभरी है जो किसी को भी मात देने मे सक्षम है|
उत्तरप्रदेश के जानकार ये बात से सहमत है की उत्तरप्रदेश एक राज्य मात्र नही है बल्कि एक राज्यो का समूह है| अभी तक उत्तरप्रदेश का चुनाव मुख्यतः दो पार्टी के बीच था- समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी| भाजपा अपनी 2014 के लोकसभा चुनाव के साख को बचाने के फिराक मे ही थी| लेकिन कांग्रेस ने पिछले कुछ दिनों मे सभी का खेल बिगाड़ दिया| ये लड़ाई चौतरफ़ा बना दिया है| एक अरसा गुजर गया है उत्तरप्रदेश मे जब कांग्रेस सरकार मे थी| युवा पीढ़ी को कोई अंदाज़ा नही है इस बात का की कांग्रेस का कार्यकाल कैसा होता है| ये कांग्रेस के लिए उत्तरप्रदेश मे वरदान साबित होगा|
सपा और बसपा दोनो ही पाँच वर्ष की पूर्ण बहुमत सरकार चला चुकी है| भाजपा भी छः साल उत्तरप्रदेश मे और अगले साल चुनाव तक 3 साल केंद्र की सरकार चला चुकी होगी| प्रधानमंत्री मोदी के पास बहुत ज़्यादा उपलब्धियां नहीं हैं जनता को बताने के लिए| किसान एक बुरे दौर से गुजर रहा, अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी है और मोदी अपने नेताओ के ज़ुबान पर लगाम लगाने मे नाकाम रहे हैं| धार्मिक कट्टरता की इतना बढ़ावा दिया जा चुका है कि आज पीछे हटना उनके और भाजपा के लिए नामुमकिन सा हो गया है| मायावती 2007 के मुक़ाबले काफ़ी कमजोर दिख रही है| उनके सलाहकार एक के बाद एक छोड़ कर जा रहे हैं| ब्राह्मणों ने उनका साथ छोड़ दिया है| इसलिए बसपा से 2007 को दुहराना नामुमकिन है| सपा की सरकार है| अखिलेश यादव एक युवा मुख्यमंत्री माने हैं लेकिन उनके शासन काल मे जो क़ानून व्यवस्था बिगड़ी है उसका काफ़ी नुकसान उठाना पड़ेगा| अखिलेश की छवि साफ- सुथरी होने के बाबजूद उनके चाचा और आज़म ख़ान की सरकार मे भूमिका से लोग काफ़ी खफा है| मुसलमान, जो सपा को वोट देते आए है, को इस बार कांग्रेस के रूप में एक विकल्प मिला है। मुज़्ज़फरनगर के दंगे से लेकर, दादरी, मथुरा और अब कैराना की घटना ने सपा सरकार और अखिलेश की भूमिका को कटघरे मे लाकर खड़ा कर दिया है|
जानकारों की माने तो अभी तक कांग्रेस की उत्तरप्रदेश की नीति सही बैठ रही है| उत्तरप्रदेश की जातिगत समीकरण मे SC- 21% (उप जाति-66) , OBC-41% (उप जाति- 79), Muslim-17% , other upper caste-8%, Brahmin 13%, इसमे ब्राह्मण एक महत्वपूर्णा भूमिका निभाते है| एक अकेले उप जाति के रूप मे उनकी 13% जनसंख्या है| जो किसी भी एक उप-जाति से ज़्यादा है| इतना ही नही 2009 के लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस के खाते मे आए 21 सांसद को जीतने मे 31% ब्राह्मणो के वोट, 28% OBC के वोट और 25 % मुसलमानो के वोट का गठजोड़ था|
कांग्रेस के उत्तरप्रदेश की जीत की नींव हमेशा से ब्राह्मण, मुस्लिम और ओबीसी के सहयोग से ही रखी गयी है| 1989 मे पहली बार कांग्रेस अपने इस नीति से भटकी और परिणाम स्वरूप आज तक ना उत्तरप्रदेश मे वापस आई ना ही केंद्र मे पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाई| उत्तरप्रदेश की राजनीति मे जहा कांग्रेस के पाले मे एक भी जातिगत समीकरण पिछले तीन दशकों मे नही था, वही इस बार वो पूरी कोशिश कर रहे है कि ब्राह्मणों को अपनी तरफ लाए| इससे मुस्लमान और OBC खुद बखुद इसे एक विकल्प मानकर सोचने पर मज़बूर होंगे|
पिछले 2 विधानसभा, लोकसभा चुनाव को देखें तो ये दांव सही लग रहा है| ब्राह्मणों ने जहा 2007 के चुनाव मे मायावती जी को वोट दिया और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई| वही 2009 के लोकसभा मे कांग्रेस को वोट दिया, जिसकी वजह से कांग्रेस को 21 सांसद मिले| 2012 के विधानसभा चुनाव मे सपा को वोट मिला और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई| वही 2014 के चुनाव मे ब्राह्मण समुदाय भाजपा को वोट देकर उन्हे 72 सीट जीतने मे कामयाबी दिलाई| राजनीति के जानकार ये मानते है की उत्तरप्रदेश के चुनावी दंगल मे ब्राह्मण अपने संख्या से बहुत ज़्यादा चुनावी माहौल को बनाने की भूमिका निभाते है|
इन मुश्किल की घड़ी मे जब कांग्रेस को सबसे बड़ी लड़ाई लड़नी है उसमे गुलाम नबी आज़ाद, शीला दीक्षित, राज बब्बर, संजय सिह, प्रमोद तिवारी के साथ एक संतुलित टीम गठन कर मुक़ाबले को रोचक बना दिया है| शायद इसी को तज़ुर्बा कहते है| इस टीम के साथ कांग्रेस के उमीदवार सूची पर सबकी निगाह होगी| यदि उसमे भी यही संतुलन दिखा तो ये कहना ग़लत नही होगा की कांग्रेस अपनी आधी लड़ाई जीत चुकी होगी|

अनुपम शर्मा ( प्रभारी ) आई टी सेल कांग्रेस अजमेर राजस्थान

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