क़लम उठ जाती है

नटवर विद्यार्थी
नटवर विद्यार्थी
जब-जब भी बाहर जाता हूँ ,
आती याद मकान की ।
थोड़ी साथ लिए चलता हूँ ,
माटी राजस्थान की ।

माथे पर इसको मलता हूँ ,
तन शीतल हो जाता ।
और लगाता सीने से जब ,
मन निर्मल हो जाता ।

जिसको संग रखने से होती,
अनुभूति भगवान की ।
थोड़ी साथ लिए चलता हूँ ,
माटी राजस्थान की ।

इसमें माँ की मीठी लौरी ,
और पिता का साया ।
मीरा के भजनों की लहरी ,
रामदेव की माया ।

करमा की है पुण्य धरा ये ,
थाती हिन्दुस्तान की ।
थोड़ी साथ लिए चलता हूँ ,
माटी राजस्थान की ।

पौरुष की जब बात करें तो ,
छवि प्रताप की आती ।
आज़ादी के रखवाले हम ,
कण-कण हल्दीघाटी ।

कथा-कहानी मिल जाएगी ,
घर-घर में बलिदान की ।
थोड़ी साथ लिए चलता हूँ ,
माटी राजस्थान की ।
-नटवर विद्यार्थी

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