“सब्र का बाँध” टूटा तो, ‘सबकुछ’ बहा ले जाएगा

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
देश के प्रधान सेवक जी के नये फार्मूले ने सबकी नींद उड़ा कर रखदी है। भ्रष्टाचार की जड़ बना ‘काला धन’ बाहर निकालने का ऐलान खुद सर कार के गले की हड्डी बनने की तैयारी पर है। प्रमुख इन्टैलीजैंस एजेन्सी की माने तो, सरकार को हिन्ट दे दिया गया है।
इधर सैंकड़ों लोग हर रोज सुभा सुभा से ही नोट बदलवाने, रकम जमा कराने के लिये कतार बद्ध होकर घन्टों इंतजार करते थक रहे हैं। अपना काम धन्धा छोड़कर, आते लोग जिनमें गृहणिया भी शामिल हैं , रोज रोज की इस मगजमारी से शाम तक थक हार कर लौट जाते हैं। हाँ मोदी जी तारीफ भी हो रही है।
हालात अब तक यह कि, एक ‘लिमिट’ के चलते, उन्हें कई जगह नये नोट के दर्शन ही नसीब नहीं हुए हैं।
सौ रुपये के नोट पर भी सोशल मीडिया के जरिये सूचनाएं हैं कि, ज्यादा जमा न करें ,सरकार यह भी बदलने वाली है। कहीं से खबरों में आ रहा है, कि, 2000 रु वाला नया नोट रंग छोड़ रहा है, तो कहीं ‘इन्कम टैक्स’ का भय दिखाया जाने से हर दिन लोग दिल और दिमाग से बुरी तरह आहत हो रहे हैं। उनकी बरसों की जमा पूँजी का ऐसा हश्र होगा सोचा नहीं गया था – कभी। देश ही में, इस नोटबन्दी की घोषणा से पहले ही, – बड़े नामीे और महान बिजनैस.घरानों ने बैंकों में अपने नोट जमा करा दिये हैं अथवा गड्डियाँ उनके ठिकानों पर पहुँ च चुकीं हैं यह बात भी खुलकर बाहर आगई है। किस किस का जवाब दे पायेगी सर- कार।
…और तो और ऊपर से कई, बैंकों की कारगुजारी यह कि, वहाँ से गार्ड भी हटा दिये गये हैं। लाईनों में लगे लोग जब तक वहाँ पहुँचते हैं पैसा खत्म हो जाता है।
इन एटीएम पर तो पुलिस भी नहीं दिखती। अब लुटे तो लुटे बैंकों का तो अच्छा खासा ‘मामला’ इंश्योर्ड है।
… इधर जनता त्रस्त और उधर असामाजिक सक्रिय, लोगों की भावनाओं से अच्छी खासी खिलवाड़ नहीं हो रही ? ये पब्लिक है, सब जानती है, लेकिन राष्ट्रहित की ऐसी शह पर कब तलक करपाएगी सब्र!
अराजकता का माहौल पनपने से पहले ही ‘डैमेज कन्ट्रोल’ पर कभी नेताओं ने सोचा ही नहीं होगा।
ऊपर से तुर्रा यह कि, सरकार थोड़ा थोड़ा समय बढाये जाने का ऐलान करती है, यानी राहत देती है ,वो ऊँट के मुँह में जीरा जैसा है। लोगों के धैर्य की भी एक लिमिट है, जी। कृपया इस शाश्वत धैर्य को परेशानियों की ‘आग’ के नजदीक पहुँचने से पहले रोक – लीजिये। वर्ना सबकुछ ही स्वाहा हो जाएगा ?
अब इससे भी क्या फर्क पड़ता है, कि, कुछ लोग राजनैतिक मंचके नाम पर अपनी खबरें छपवाने की गरज से लाईनों में खड़े कुछ लोगों को ठण्डे जल की सेवा दे दें या किसी का फार्म आदि भरा दे, अथवा कतारों को भली तहजीब सिखाने आगे आ भी जाएं।आखिर आगे ‘वोट’ तो यही ‘कतार बद्ध’ लोग ही देने वाले हैं ना……।

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