ये विडंबना है कि सत्ता की राजनीति में विकास का श्रेय लेने की होड़ सब दलों में लगी है, जबकि विकास एक सतत प्रक्रिया है। विकास अगर ढांचागत है तो बेमानी है। असल विकास तो सामाजिक और आर्थिक स्तर पर दिखना चाहिए, जो सत्तर साल में कम ही दिखा। ढांचागत विकास तो अंग्रेज भी करा रहे थे, आधुनिक सुविधाओं, जैसे वायुयान, ट्रेन, फोन, विद्युत् और विद्युत् उपकरणों का आविष्कार पाश्चात्य देशों में हुआ और ब्रिटिश सत्ता के दौरान ये सब चीजें भारत में आईं। अगर सिर्फ यही विकास है तो फिर अंग्रेजों को राज करने देते, आजादी की क्या जरूरत थी। मरने दो किसानों को, करने दो आत्महत्या बेरोजगारों को, बनने दो अपराधी युवाओं को, भूखे मरने दो फुटपाथ पे बच्चों को, लूटने दो माताओं बहनों की अस्मत, गरीबों को सड़ने दो कीड़ों मकड़ों की तरह……
विकास दिख रहा है मेट्रो ट्रेन आने से, मॉल कल्चर डेवलप होने से, स्वछन्द पाश्चात्य मानसिकता में डूबे समृद्ध युवाओं में, भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों की कुत्सित मानसिकता में।
अगर इसे देश का विकास मानते हैं तो अच्छा है कि देश फिर किसी महाराज या जिल्ले सुभानी के हवाले करके लाल किले पे दरबार लगा दो, और बंद करो लोकतंत्र का ढोंग
अमित टंडन, अजमेर..