संविधान की आत्मा और उच्चतम न्यायालय का निर्णय

मुजफ्फर अली
मुजफ्फर अली
उच्चतम न्यायालय ने देश के संविधान की आत्मा धर्मनिरपेक्षता को फिर से रेखांकित करते हुए एक ओर बडा फैसला दिया है। उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार देश में कोई भी धर्म, जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर वोट नहीं मांग सकता है। ऐसा करना चुनाव में भ्रष्ट आचरण होगा। दरअसल पिछले ढाई दशकों से देश में एक वैचारिक लहर पैदा की गई है। इसका उददेश्य जो भी हो लेकिन इससे देश की जान धर्मनिरपेक्षता प्रभावित हो रही थी। कुछ ताकतें विभिन्न मंचो, सेमीनारों, सम्मेलनों और समाज की बैठकों में धर्मनिरपेक्षता को अर्थहीन बताने तथा संविधान से इस शब्द को ही हटा देने की वकालत करने में जुटी रहीं हैं। कुछ हद तक उनके प्रयास पिछले पच्चीस सालों में सफल रहे और समाज में यह विचार पनपने में कामयाब भी रहे कि एक देश एक विचार तो एक धर्म-रंग होना चाहिए। इस विचार को देशभक्ति के साथ जोड दिया गया ताकि किसी विरोध की कोई गुजांईश नहीं रहे। इस अदभुत एकता के विचार का फैलाव धीरे धीरे होता गया लेकिन इससे संविधान की आत्मा जख्मी होती जा रही थी। देश की राजनीति के केन्द्र ने जब जब संविधान से हटकर कोई कदम उठाया है तब तब उच्चतम न्यायालय ने सरकारों और राजनेताओं को संविधान की याद दिलाई है। इसी संदर्भ में एक निर्णय याद आता है कि सरकारी कार्यालयों के परिसरों में धार्मिक स्थलों का निर्माण । उच्चतम न्यायालय ने लगभग दस वर्ष पूर्व यह कहा था कि सरकारी परिसरों में धार्मिक स्थलों का निर्माण नहीं होना चाहिए। यह निर्णय आने के बाद देश भर के कलेक्ट्रेट , निगम निकाय , जिला परिषदों या ऐसे अनेक सरकारी स्थलों के परिसरों में बने धार्मिक स्थलों के पास चुपके से दीवार बनाकर अलग कर दिया गया हालाकि फिर भी धार्मिक स्थल में प्रवेश के लिए दरवाजा परिसरों में खुला रखा लेकिन सरकारी दायरे से किसी विशेष धर्म को बाहर रखा गया। अफसोस यह भी है कि आज विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के आवासीय परिसरों, सचिवालयों, प्रमुख कार्यालयों में धर्म विशेष की तस्वीरें, निर्माण मिल जाएगीं। इस बात का ज्यादा खुलासा करने की आवश्यकता नहीं कि पिछले तीन सालों में देश में कुछ वर्ग अधिक ताकतवर और सरकार का सरंक्षण पाकर चुनावों में धर्म, जाति के नाम पर वोट मांगने से परहेज नहीं कर रहे हैं। यह एक खतरनाक कदम है जो आगे चलकर देश को नुकसान पहुंचा सकता था लेकिन एक बार फिर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तीन के मुकाबले चार जजों के बहुमत से उक्त फैसला देकर संविधान की रक्षा की है।उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वागत योज्य है।
मुजफ्फर अली

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