योगी आदित्यनाथ से है चमत्कारों की आशा

yogi aadityanathभारत के लोगों में चमत्कार-प्रियता का भाव कुछ अधिक ही है। इस प्रवृत्ति के युग-युगांतरकारी विस्तार का अधिकतम श्रेय नाथ-योगियों एवं वज्रयानी-सिद्धों को जाता है। उनके प्रभाव से भारत का आम आदमी इस बात में विश्वास करता है कि तप और योग के बल पर मनुष्य पानी पर चल सकता है, अग्नि में प्रवेश करके सुरक्षित रह सकता है, हवा में उड़ सकता है। वह अणु से भी छोटा और पर्वत से भी बड़ा हो सकता है। वह हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है। जब भारत में बौद्ध धर्म का बोलबाला हो गया तो नाथों ने योग का अद्भुत एवं चमत्कारपूर्ण दर्शन भारत की भोली-भाली जनता के समक्ष रखा। नौ-नाथों और चौरासी सिद्धों ने पूरे भारत में घूम-घूम कर योगबल से प्राप्त की जा सकने वाली सिद्धियों का प्रवचन एवं प्रदर्शन किया ताकि जन-सामान्य को ईश्वर के प्रति नत-मस्तक रहने, साधु संतों की सेवा करने तथा तप एवं योग के प्रति प्रेरित किया जा सके।
भारतीय संस्कृति में जिन योगियों के नाम बड़ी श्रद्धा से लिये जाते हैं उनमें राजा हरिश्चंद्र, राजा भर्तृहरि, राजा गोपीनाथ, योगी मत्स्येन्द्रनाथ (मछन्दरनाथ), गोरखनाथ (गौरक्षनाथ), जालंधरनाथ एवं बालकनाथ आदि प्रमुख हैं। ग्रामीण अंचलों में जिन कालभैरव, बटुकनाथ और भैरवनाथ आदि के प्रकट होने, लोगों से साक्षात्कार करने, चमत्कार दिखाने, प्रेतों से लड़ने आदि कार्यों की चर्चा बहुतायत से होती है, वे भी वास्तव में नाथ-योगी ही थे जिन्हें शिवभक्त होने के कारण शिवजी का गण भी माना गया तथा उनके दैवीय-स्वरूप में विश्वास किया गया।
मच्छन्दरनाथ के शिष्य गोरखनाथ थे। इन दोनों के बारे में एक कथा बहुत लोकप्रिय है कि मच्छन्दरनाथ एक बार कामरूप (आज का असम एवं अविभाजित बंगाल) देश में भिक्षाटन के लिये गये। उन्होंने एक घर की एक महिला को अपने योग के चमत्कार दिखाने की चेष्टा की। वह महिला मच्छन्दरनाथ से भी अधिक तंत्र जानने वाली थी। उसने मच्छन्दरनाथ को बकरा बनाकर अपने घर में बांध लिया। जब बहुत दिनों तक गुरु नहीं लौटे तो गोरखनाथ को उनकी चिंता हुई और वे उन्हें ढूंढने लगे किंतु मच्छन्दरनाथ का कहीं पता नहीं चला। इस पर गोरखनाथ ने योग बल से पता लगा लिया कि उनके गुरु कहां हैं और किस रूप में हैं। गोरखनाथ वहां पहुंचे और उन्होंने उस घर के बाहर पहुंचकर अलख लगाई- जाग मच्छन्दर गोरख आया। शिष्य की आवाज सुनकर, बकरे के रूप में खड़े मच्छन्दरनाथ को अपने सही स्वरूप का भान हुआ और गुरु उस तांत्रिक महिला के बंधन से मुक्त होने में सफल हुए। यह किस्सा पूरे भारत में इतना विख्यात है कि लगभग हर आदमी ने इसे किसी न किसी रूप में सुना है।
वस्तुतः नाथ और सिद्ध योगियों की यह परम्परा शैव-धर्म की ही शाखाएं हैं किंतु ऐसे नाथ योगी भी हुए हैं जिन्हें वैष्णव धर्म तथा शैव धर्म दोनों में बराबर महत्व दिया जाता है। इन्हीं में से एक हुए भगवान दत्तात्रेय जिन्होंने आबू पर्वत पर रहकर तपस्या की। आज भी उनका एक मंदिर उस स्थान पर स्थित है। जालंधरनाथ की कर्मभूमि भी राजस्थान रही। माना जाता है कि जालोर नगर का नामकरण इन्हीं जालंधरनाथ के नाम पर हुआ।
पश्चिमी राजस्थान में कनफड़े योगियों का एक ऐसा सम्प्रदाय विकसित हुआ जिसने शैव सम्प्रदाय का होते हुए भी वैष्णव धर्म में सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त की। इन्हीं में से एक थे आयस देवनाथ। ई.1793 में जोधपुर के राजकुमार मानसिंह ने जोधपुर नरेश भीमसिंह के भय से जालोर दुर्ग में शरण ली। दस साल तक जोधपुर की सेना जालोर दुर्ग को घेर कर बैठी रही किंतु मानसिंह को परास्त नहीं किया जा सका। अंत में ई.1803 में राजकुमार मानसिंह ने समर्पण करने का निश्चय किया। उसी पहाड़ी पर एक कनफड़ा योगी आयस देवनाथ रहता था। उसे जब राजा का निश्चय ज्ञात हुआ तो उसने कहा कि 21 अक्टूबर तक धैर्य रखो। मानसिंह ने उसकी बात मान ली। दैववश 20 अक्टूबर को समाचार आया कि जोधपुर नरेश भीमसिंह का निधन हो गया है। इसलिये जोधपुर राज्य का सेनापति सिंघी इन्द्रराज, मानसिंह को हाथी पर बैठाकर जोधपुर ले आया और उसे जोधपुर का राजा बना दिया।
इस घटना से मानसिंह इतना प्रभावित हुआ के उसने देवनाथ को अपना गुरु मान लिया। वह देवनाथ के दर्शन किये बिना मुंह में अन्न का कण नहीं रखता था। उसने नाथ साधुओं की प्रशस्ति में अनेक ग्रंथों एवं काव्यों की रचना की जिनमें जालंधर चन्द्रोदय, जालन्धर चरित, नाथ कीर्तन, नाथ चन्द्रिका, नाथधर्म निर्णय, नाथ प्रशंसा, नाथ महिमा, नाथजी की स्तुति, नाथजी के पद तथा सिद्ध सम्प्रदाय प्रमुख हैं। मानसिंह का पुत्र छत्रसिंह, वैष्णव धर्म में आस्था रखता था। इसे लक्ष्य करके राजकवि बांकीदास ने लिखा- ‘जब मान को नंद गोविन्द रटै, तब गण्ड फटै कनफट्टन की। ’ इस कविता को सुनकर महाराजा मानसिंह इतना नाराज हुआ कि उसने बांकीदास को देश निकाला दे दिया। बाद में जब कैप्टेन लडलू ने नाथों को मारवाड़ से निकाल दिया, तब महाराजा मानसिंह दुखी होकर अपना महल छोड़कर मण्डोर उद्यान में चला गया और वहीं अपने प्राण त्याग दिये।
उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, गोरखनाथ की परम्परा के योगी हैं। उनसे उत्तर प्रदेश को ही नहीं, पूरे भारत को आशा है कि वे भारत की राजनीति में कोई चमत्कार करके दिखायेंगे जिससे भारत की धर्म-प्राण जनता सुखी होगी। देश में कानून व्यवस्था सुधरेगी, दुष्टजन भयभीत होंगे। सज्जनों को अभय मिलेगा। निर्धनों की आशाएं फलीभूत होंगी, भूखों को भोजन मिलेगा, बीमारों को इलाज मिलेगा और छतहीनों को छत मिलेगी। अकर्मण्य लोग आलस्य त्यागकर परिश्रम करने को आतुर होंगे और तीर्थों की सुरक्षा एवं सफाई होगी। मूक पशु निर्भय होंगे, संत लोग भारत की जनता को सत्यनिष्ठ, सहिष्णु एवं धैर्यवान बनने की प्रेरणा देंगे। जनता के कर से प्राप्त होने वाली राशि का दुरुपयोग नहीं होगा।
योगी आदित्यनाथ से इस चमत्कार की आशा इसलिये भी की जाती है कि वे वीतरागी हैं, विज्ञान के स्नातक हैं, विगत बाईस वर्षों से सांसद हैं, विचारवान हैं, स्पष्ट वक्ता हैं, दृढ़-प्रतिज्ञ हैं और ऐसे दल के प्रतिनिधि हैं जो तुष्टिकरण और जातिवाद की राजनति के स्थान पर सबका साथ सबका विकास की बात करता है। मेक इन इण्डिया की बात करता है, स्वच्छ भारत की बात करता है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता,
63, सरदार क्लब योजना,
वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर।

error: Content is protected !!