प्री वेडिंग के बहाने नष्ट की जा रही है भारतीय संस्कृति

◆ *शादी होने से पहले ही प्री वेडिंग के नाम पर कई राते साथ गुजारने लगे है युवक युवतियां•••*

राकेश भट्ट
राकेश भट्ट
दोस्तों पिछले 1-2 सालो से देश में भारतीय संस्कृति से होने वाले विवाह समारोह में प्री वेडिंग के नाम पर एक नया प्रचलन सामने आया है।जिसको वर्तमान में ऐसे परिवारो द्वारा आयोजित किया जा रहा है।जो समाज की रीढ़ कहे जाते है,जिनकी समाज में तूती बोलती है या जो समाज के संचालक होते है ।
इसके तहत होने वाले दूल्हा- दुल्हन अपने परिवारजनो की सहमति से शादी से पुर्व फ़ोटो ग्राफर के एक समूह के साथ देश के अलग-अलग सैर सपाटो की जगह,बड़ी होटलो,हेरिटेज बिल्डिंगों,समुन्द्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जहाँ सामान्यतः पति पत्नी शादी के बाद हनीमून मनाने जाते है। जाकर अलग- अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहो में समाते हुए वीडियो शूट करवाते है।और फिर ऐसी वीडियो फ़ोटो ग्राफी को शादी के दिन एक बड़ी सी स्क्रीन लगाकर।जहाँ लड़की और लड़के के परिवार से जुड़े तमाम रिश्तेदार मौजूद होंते है की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से उस कपल को वो सब करते हुए दिखाया जाता है जिनकी अभी शादी भी नहीं हुई है।और जिनको जीवन साथी बनने के साक्षी बनाने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिये ही सगे संबंधियो और सामाजिक लोगो को वहा बुलाया जाता है।लेकिन यह क्या गेट के अंदर घुसते ही जो देखने को मिलता है वह शर्मसार करने वाला होता है।जिस भावी कपल को हम वहा आशीर्वाद देने पहुँचते है।वो वहा पहले से ही एक दूसरे की बाहो में झूल रहे होंते है।और सबसे बड़ी बात यह है की यह सब दोनों परिवारो की सहमति से होता है।
और लड़का- लड़की कई दिन तक बाहर रहकर साथ में कई राते बिता चुके होंते है। यह सब देखकर एक विचार मन में आता है।जब सब कुछ हो चुका है तो आखिर हमें यहाँ क्यों बुलाया गया है।यह शुरुआत अभी उन घरानो से हो रही है।जो समाज के नेतृत्वकर्ता और समाज को राह दिखाने वाले बड़े बड़े समाजसेवी पैसे वाले है जो समाज सुधार की दिशा में कार्यक्रम करते रहते है। ऐसे बड़े परिवार ऐसी शादियों को जो अपने पैसो के बल पर इस प्रकार की गलत प्रवर्तियो को बढ़ावा देकर समाज के छोटे तबके के परिवारो को संकट में डाल रहे है।मेरा समाज के उन सभी सभ्रांतजनो से अनुरोध है- अपने- अपने समाज में ऐसी पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले परिवारो से ऐसी प्रवृत्ति को बंद करने का अनुरोध करे।अन्यथा ऐसी शादियों का सामाजिक बहिष्कार करे।तब ही ऐसी प्रवर्तियो पर रोक लगना संभव हो सकेगा।अन्यथा ऐसी संस्कृति से आगे चलकर समाज का इतना बड़ा नुकसान होंगा जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों तक करना संभव नहीं हो सकेंगा और कुछ परिवारो की वजह से शादी जैसे पवित्र बंधन पर शादी से पूर्व ही एक बदनुमा दाग लगेगा।जिसका खामियाजा समाज के छोटे तबके को भुगतना पड़ेंगा।जिसकी परिणीति में शादी से पूर्व सम्बन्ध टूटना या शादी के बाद तलाक की संख्या में वृद्धि के रूप में होंगी।
*जरूर सोचे एवं विचार करे की आखिर हम समाज , परिवार और हमारी भारतीय संस्कृति को कहा ले जा रहे है और आने वाली पीढ़ियों के सामने क्या उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते है।*

*राकेश भट्ट*
*प्रधान संपादक*
*पॉवर ऑफ़ नेशन*
*मो 9828171060••*

error: Content is protected !!