ये जानते हुए कि
मैं छोड़ी जा चुकी हूँ
फिर भी एक इंतज़ार है
कि तुम ….खुद से
अपनी गलती स्वीकार करो
ताकि मैं लौट सकूँ
जहाँ से मैं आई हूँ
पर मैं जानती हूँ
ये सब भ्रम है मेरे ही मन का |
हां ….सीता के देश में
मैं ..सीता सी नहीं हूँ
वो ,कर्तव्यों के लिए
त्यागी गई
और मैं …अपने प्यार में
धोखे की खातिर…
अपवित्र ,और खरोंचा हुआ शरीर लेकर
खुद पर लज्जित हूँ
और अब तो दिल पर
एक बोझ सा लदा है
अपनी ही किस्मत का |
मेरे लिए अब ये जरुरी था
कि ढूँढतीं फिरूं ,
अपने जिस्म को ढोने के लिए
वो चार कंधे ,
जिस पर तय करना है,मुझे अब ये
आखिरी सफर ||
-अंजु चौधरी, करनाल
wah… bahut behtareen