गंजों के हाथ में कंघा, अंधों के पास आईना

अमित टंडन
अमित टंडन
High कोर्ट ने करीब एक माह पूर्व आदेश दिए हैं के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अब फिक्स pay (मानदेय अथवा संविदा) पर दोबारा ना रखा जाए। स्थाई कर्मचारियों से काम कराया जाए। बावजूद इसके विभागों और निगमों में रिटायर्ड कर्मचारी लगातार काम किये जा रहे हैं।
हालाँकि सोच ये है कि उनके बरसों के अनुभव का लाभ 5 साल और काम आएगा, क्यूंकि 60 की उम्र में रिटायर होने वाला कर्मचारी 5 साल तक, यानी 65 की उम्र तक संविदा अथवा मानदेय पर काम कर सकता है। बस हर साल कार्यकाल बढ़वाना पड़ता है।
*** मगर ये नियम तब तक था जब तक high कोर्ट ने इन रिटायर्ड कर्मचारियों की पुनः नियुक्ति पर रोक नहीं लगाईं थी। कोर्ट द्वारा रोक लगाने के बाद नियम स्वतः निरस्त माना जाना चाहिये। पर शायद सरकार के पास प्ली होगा के हम तक अभी आदेश की कॉपी नहीं आई, और विभाग तो वैसे भी इस बहाने को अचूक इलाजे-बचाव के रूप में इस्तेमाल करते हैं कि “अभी आदेश हम तक नहीं आये, हम दिखवाते हैं”…।
हालाँकि ये सोच गलत है के रिटायर्ड व्यक्ति के अनुभव का और 5 साल लाभ मिल रहा है। क्योंकि यहाँ रिटायर होने के बाद वही कर्मचारी अपनी जुगाड़ से संविदा नियुक्ति पा रहे हैं, जिन्होंने रिटायर होने से पहले या तो अधिकारियों की चमचागिरी में अपने 35-38 साल बिताए या फिजूल की नेतागिरी में। ना काम कभी ईमानादारी से लग के किया, न काम पूरा आता है। (कृपया अपवादों को छोड़ कर पढ़ें इस वक्तव्य को)
आज 98 फीसदी वही कामचोर टाइप के लोग रिटायर होने के बाद अपनी पहचान और नेतागिरी के दम पर और 5 साल के ऐश का इंतजाम कर रहे हैं।
हकीकत यही है के जो सही में कर्मठ ईमानादर जुझारू कर्मचारी हैं, वो या तो अव्वल तो रिटायर होने के बाद दोबारा लगने के लिए आवेदन ही नहीं करते, औऱ यदि कोई इच्छुक होता है और आवेदन करता भी है तो उच्च अधिकारी उसका आवेदन निरस्त करवा देते हैं, क्यूंकि उन्हें उन ईमानादर कर्मठ लोगों की जरूरत नहीं।
और जो कामचोर नेता लोग पुनः नियुक्ति पा जाते हैं, उन्हें नौकरी पे रहते ही कभी खौफ नहीं था, अब रिटायर होकर संविदा पर लगने के बाद तो औऱ बेधड़क और बेलिहाज, क्योंकि अब ना तो ट्रांसफर का डर, ना किसी नोटिस या चार्जशीट का भय।
**बस उलटे सीधे काम करके, वर्तमान अधिकारियों व कर्मचारियों की जासूसी करके, उच्च अधिकारियों के कान भर के, वर्तमान साइनिंग ऑथोरिटी वाले अधिकारियों से गलत काम करवाने की साज़िशें करके माहौल बिगाड़ने के सिवा कुछ नहीं कर रहे।
दूसरा ये के देश में बेरोजगारी की समस्या से निपटने का सरकारों के पास वैसे भी कोई उपाय नहीं। खाली ढोल पीटती हैं। ऐसे में खाली हुयी सीटों पे इन पेन्शन धारी मसखरों को रख बेरोजगारों का हक़ मारा जा रहा है। *अनुभव के उपयोग की आड़ में एक तो कार्यालयों का वातारण बिगड़ा पड़ा है, वहीं पेन्शन से जीवन यापन की क्षमता वाले सक्षम लोग और एक्स्ट्रा 15 हज़ार महीना पा कर बेरोजगारों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।*
*** मगर सबसे बड़ा पॉइंट तो ये है कि सरकारें अदालतों अथवा न्यायपालिकाओं से ऊपर हो गईं क्या?? जब high कोर्ट के आदेश हैं तो ये व्यवस्था अब तक बंद क्यों नहीं हुई, क्यों सरकार ने अब तक पालना नहीं की??
*नतीजा ये हुआ के कई विभागों में फिर से नए सिरे से अनेक रिटायर कर्मचारियों को पुनः नियुक्ति दे दी गई, और कई कतार में खड़े सिफारिशें लगा रहे हैं। जबकि अदालत को करीब एक महीना हो गया फरमान जारी किये।

अमित टंडन, अजमेर

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