लौह पुरुष सरदार पटेल के जीवन के प्रेरणादायक प्रसंग

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाद मुंबई में हुआ था ! सरदार विभाजन के बाद भारत के बिखरे राज्यो का विलय सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता और अनोखे तरीके के साथ किया था, उनकी 142वें जन्मदिन पर उनके श्रीचरणों में 132 करोड़ भारतवाषियों का शत-शत नमन |
सरदार पटेल के जीवन के प्रेरणादायक प्रसंग
कर्तव्यपरायणता को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले सरदार——– सरदार वल्लभ भाई पटेल वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से लगता है। वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक लगातार बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया| बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदारपटेल की पत्नी का निधन हुआ है तब जज साहिब ने सरदार पटेल से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्जनिभा रहा था, जिसकी फीस मेरे मुवक्किल ने मुझे दी थी, मैं उसकेसाथ अन्याय कैसे कर सकता था | ऐसी कर्तव्यपरायणता के उदाहरण इतिहास में कम ही मिलते हैं |
सादगी और नम्रता की प्रतिमूर्ति——– बात उन दिनों की है जब सरदार पटेल भारतीय लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के सभापति हुआ करते थे,एक दिन अपना काम पूरा कर सरदार ज्योंहीं घर जाने लगे तभी एक अंग्रेज दम्पत्ति एसेंबली के प्रागण में आया | पटेल की बढ़ी हुई दाढ़ी और सादे वस्त्र देखकर उस दम्पत्ति ने उनको वहां का चपरासी समझ लिया | अंग्रेज दम्पत्ति ने उन्हें ऐसेबंली में घुमाने के लिए कहा | पटेल ने उनकाआग्रह विनम्रता से स्वीकार किया और उस दम्पत्ति को पूरे ऐसेंबली भवन में साथ रहकर घुमाया |अग्रेज दम्पति बहुत खुश हुए और लौटते समय पटेल को एक रूपया बख्शिश में देना चाहा | परन्तुपटेल बड़े नम्रतापूर्वक मना कर दिया | अंग्रेज दम्पति वहां से चला गया |
दूसरे दिन ऐसेंबली की बैठक थी. दर्शक गैलेरी में बैठे अंग्रेज दम्पत्ति ने सभापति के आसन पर बढ़ीहुई दाढ़ी और सादे वस्त्रों वाले शख्स को सभापति के आसन पर देखकर हैरान रह गया | और मन हीमन अपनी भूल पर पश्चाताप करने लगा कि वे जिसे यहाँ चपरासी समझ रहे थे, वह तो लेजिस्लेटिव ऐसेंबली के सभापति निकले,अंग्रेज दम्पति पटेल की सादगी को देख मन ही मन में लज्जा महसूस करने लगे | सरदार वास्तव में सज्जनता,सादगी की प्रतिमुर्ती ही थे |
कच्ची पक्की रसोई का फर्क
सरदार पटेल एक बार संत विनोवा भावे जी के आश्रम गये जहां उन्हें भोजन भी ग्रहण करना था |आश्रम की रसोई का काम उत्तर भारत से आये आदमी के जिम्में था | रसोईघर के मुखिया ने सरदार पटेल से पूछा कि – आपके लिये रसोई पक्की बनवानी या कच्ची बनवानी है, सरदार पटेल कच्ची-पक्की का अर्थ न समझ सके और वे बोले “ कच्चाक्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे” | खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी, कचौरी, मिठाईजैसी चीजें आयी तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी, तब रसोईघर का मुखिया बोला सरदार आपके निर्देश से पक्की रसोई बनाई गयी है ध्यान देने योग्य बात है कि उत्तर भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी रोटी, सब्जी, दाल, चावल जैसे सामान्य भोजन को कच्ची रसोई कहा जाता है एवं पूरी, कचौरी, मिठाई आदि विशेष भोजन (तला–भुना) पक्की रसोई कहा जाता है.
इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के फ़र्क़ को समझ पाये |सरदार पटेल जैसी सादगी से रहते थे वैसे ही उनका भोजन भी सात्विक और सादा ही होता था |
जो भी काम करो तो उसे पुरी लगन और तन्मयता के साथ करें——
बालक पटेल अपने किसान पिता के साथ खेत पर जाया करते थे | एक दिन पटेल के पिताजी खेत में हल चला रहे थे वहीं पिता के साथ चलते चलते सरदार पहाड़े याद कर रहे थे. वे पहाडे याद करने में पूरी तरह से तल्लीनहो गये और हल के पीछे चलते चलते उनके पांव में कांटा लग गया परन्तु सरदार पटेल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ाक्योंकि वोतो पहाड़े याद करने में मशकुल थे | तभी अचानक उनके पिताजी की नजर वल्लभ भाई के पांव पर पड़ी तो पांव में बड़ा सा कांटा देखकर एक दम से चौक गये और तुरंत अपने बैलों को रोककर वल्लभ के पैर से कांटा निकाला और घाव पर पत्ते लगाकर खून को बहने से रोका | सरदार पटेल की इस तरह की एकाग्रता और तन्मयता देखकर उनके पिताजी बहुत खुश हुए और उन्हें जीवन में कुछ बड़ा करने का आशीर्वाद दिया और सरदार को उनकी सफलता के लिये आशीर्वाद दिया जिसे सरदार ने वास्तविकता में प्राप्त भी किया | यहाँ याद करने वाली बात है कि हमारे जीवन में इस तरह के बहुत कांटे चुबते हैं किन्तु उनके दर्द की परवाह नहीं करते हुए आगे बड़ने से सफलता जरुर मिलती है |
जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को उखाड़ फेंकना चाहिए——
सरदार के बाल्यकाल में बच्चे टोली बनाकर पढ़ने के लिये अपने गावं से 8-10 किलोमीटर दूर जाया करते थे | एक दिन जाते-जाते अचानक छात्रों को लगा कि उन में एक छात्र कम है। ढूँढने पर पता चला कि वह वह लड़का पीछे रह गया है। एक लडके ने आवाज लगाकर कहा “ वल्लभ तुम वहां क्या कर रहे हो? ‘
उसे एक विद्यार्थी ने पुकारा, “तुम वहाँ क्या कर रहे हो?” वल्लभ बोला “ठहरो, मैं अभी आता हूँ।”
यह कह कर वल्लभभाई ने धरती में गड़े एक खूँटे को पकड़ा और उसे जोर ज़ोर से हिलाकर उखाड दिया और खूटें को सड़क से दूर फेंक कर अपनी टोली में मिल गया | उसके एक साथी ने पूछा, “तुम ने वह खूँटा क्यों उखाड़ा? इसे तो किसी ने खेत की हद जताने के लिए गाड़ा था।” इस पर वल्लभ बोला कि खूंटा रास्ते बीचो बीच गड़ा हुआ था और राहगीरों के रास्ते में रुकावट डालता था। इसलियें जिन्दगी में जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। ऐसे थे हमारे सरदार |
संकलनकर्ता—–डा.जे.के.गर्ग

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