म्हारो गांव, डूबी नाव

ओ बोटा रो बटवारो ,खाग्यो म्हारा गाव ने ,
लड़ पड़िया बाटण लाग्या ,एक रुख री छाव ने ,
बोती बगत बवलीया बाया ,आंबा किकर देत रे ,
तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे ,
गाव रे माही राजनीती रो ,एडो लाग्यो चालों ,
घर घर में ही मानड लियो ,ऐ मिनख बावला पालो ,
राजनीती रा रुला रो तो ,भेद भाव रो बेनत रे ,
तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे ,
जे मण्डतो ब्याव बाई रो ,आखो गाव बणयो मांडो,
कण कण में जठे राम रमे ,ऊंण में मिनख बणयो है डाँडो ,
म्हारे मुलक री मखमल माटी ,हो मिनखा में हेत रे ,
तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे ,
मोत मिनख री होवती ,आखे गाव में शोक ,
उणी गाव में आमा सामा ,लड़ पड्या ऐ ताला ठोक ,
खात री ठोडा खार बिखेरियो ,बिग्ड़ेला थारो खेत रे ,
तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे ,
होळी रमता डांडिया ,अर चँगा देता थाप ,
म्हारे दिवाली दीपा ने ,किकर सूंघयो सांप ,
होली दिवाली मिलता बाथा ,देखण जेड़ो हेत रे ,
तणकारीया टूटेला तार ,चेत मानखा चेत रे ,
-महेंद्र सिंह भेरुन्दा 

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