इन्सान की खुशहाली और उत्तम स्वास्थ्य का सबसे बड़ा दुश्मन—क्रोध

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
क्या हम अपने आप को क्रोध मुक्त इंसान बना सकते हैं अगर हाँ तो कैसे ? क्या आप भी उन लोगों में शामिल हैं जो यह मानते हैं कि “ क्रोध किए बिना आप अपना काम करवा ही नहीं सकते हैं ? क्यों हम उन लोगों पर क्रोधित हो जाते हैं जो हम पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं जैसे अपने बच्चें, पत्नी, आत्मीयजन ,अधिनस्थ कर्मचारी, वेटर या दुकानदार आदि आदि ? क्या क्रोध आपकी कमज़ोरी है या आपकी हमारी ताकत ? क्या आपने कभी यह महसूस किया है कि जब दूसरें लोग आपके क्रोध का शिकार बनते हैं, तब उनके दिल मे आपके लिये कैसी भावनायें उत्पन्न हुई होंगी यानि अच्छी या बुरी ? क्या दूसरों पर गुस्सा करने के बाद आप अपना आपा खो देते हैं ? हिंसा ही क्रोध रूपी दानव की पत्नी है वह कर्कशा भी है | अडियलपन ही क्रोध की बहिन है | ईगो ही क्रोध का भाई है | अहंकार ही क्रोध के पिताजी हैं | भय ही क्रोध का बेटा है इसलियें ही क्रोध और क्रोधी से सभी डरते हैं क्योंकि वह भय का बाप है, अन्य बेटे का नाम वैर-विरोध है | ईर्ष्या और घर्णा क्रोध के बेटों की पत्नियाँ है | क्रोध के घर पर आने वाले अतिथीयों का स्वागत क्रोध के बेटों की बहूँयें मुहं बना कर और नाक सिकोड़ कर करती है |
क्रोध आखिर है क्या?

मनोवैज्ञानिक चार्ल्स स्पिलबर्गर के मुताबिक” क्रोध एक ऐसी भावनात्मक अवस्था है जिसकी तीव्रता मामूली चिडचिडेपन से अत्यंत चरम सीमा की उत्तेजना, आवेश एवं क्रोधान्धता होती है |अन्य भावनाओं की तरह क्रोध भी शारीरिक और जैविक बदलावों से जुडा होता है। जब आप नाराज होते हैं तब आपके दिल की धडक़नें बढ ज़ाती है और रक्तचाप भी बढ ज़ाता है और साथ ही साथ आपके एनर्जी हारमोन्स एड्रेनेलिन और नोराड्रेनेलिन का स्तर भी बदल जाता है।

क्रोध उत्पन्न होने के मुख्य कारण हो सकते हैं यथा —आंतरिक एवं बाह्य घटनायें—

आप किसी व्यक्ति विशेष यथा आपके कार्यालय के सहकर्मी, आपके पड़ोसी, आपके अधिकारी यहाँ तक कि रास्ते चलते राहगीर के व्यवाहर से भी क्रोधित हो सकते हैं |सडक पर यातायात का जाम लगने सेया आपकी हवाई जहाज की यात्रा का अचानक निरस्त हो जाने से भी आप क्रोधित हो सकते हैं, कभीकभी आपकी निजी समस्याओं की चिंताओं अथवा अनहोनी, अनचाही भूत काल की घटनाओं को यादकरने से भी क्रोध उत्पन्न हो सकता है | हम जानते हैं कि “जैसी भावना वैसा ही मन “ क्रोध की भावना के जन्म के साथ ही मनुष्य भीतर मनोवैज्ञानिक एवं जैविक परिवर्तन होने लगते हैं |

सच्चाई तो यही है किजब आप क्रोधित होते हैं तो उसी क्षण आपकी सोच अतार्किक और अत्याधिक नाटकीय हो जाती है, आप उत्तेजित होकर अपना सयंम खो देते हैं | इस समय एकाएक आपके मुख से निकल पड़ता है “हाय यहक्या हो गया, हर चीज बर्बाद हो गई, सब कुछ खत्म” इस वक्त कुछ क्षणों के लिये लम्बी साँस ले और तनिक शांत होकर अपनी सोच को तर्कयुक्त बनायें और अपने आप से कहें की जो कुछ हुआ वो अफसोसजनक है किन्तु जीवन में कभी कभार ऐसा हो जाता है, किन्तु इस घटना मात्र से मेरे जीवन में सफलता अर्जन के सभी मार्ग बंद तो नहीं हो जाते हैं , में अन्य रास्ते खोज लूगाँ |
क्यों कुछ स्त्री-पुरुष ज्यादा क्रोधी होते हैं ?

मनोवैज्ञानिक जैरी डेफनबेकर के मतानुसार ” सच में ही कुछ लोग अन्य लोगों की तुलना में कुछ ज्यादा ही गर्म दिमाग के होते हैं, इन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है और उन्हें एक औसत व्यक्ति से अधिक तेज गुस्सा आता है । कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने गुस्से को बाहर शोर मचा कर प्रकट नहीं करते किन्तु अन्दर ही अन्दर वे बहुत चिढचिढे और गुमसुम से रहते हैं । आसानी से नाराज होने वाले कुछ लोग हमेशा बकझक नहीं करते, न ही बात बात पर हाय हाय करते रहते हैं, वे चीजे भी नहीं फेंकते, किन्तु ऐसे लोग स्वयं को समाज से दूर कर लेते हैं और अपने आपमें सिमट जाते हैं और वें शारीरिक रूप से बीमार तक भी हो ज़ाते हैं।

ऐसे लोग जो जरा जरा सी बात पर गुस्सा हो जाते हैं, उनमें सहनशीलता की कमी होती है , ऐसे लोग अपने जीवन में परिस्थितियों को सहजता से नहीं ले पाते हैं । ऐसे लोग विपरीत परिस्थितियों में असह्जता या स्वयं के साथ अन्याय हुआ महसूस करते हैं और एकदम क्रोधित हो जाते हैं |

सवाल उत्पन्न होता कि लोग ऐसा व्यवाहर क्यों करते है? इसके कई कारण हो सकते हैं । उनमें से एक कारण आनुवांशिक या शरीर संरचना की वजह से भी हो सकता है । इसका सबूत वे बच्चे हैं जो पैदायशी रूप से चिढचिढे होते हैं । क्रोधी व्यवाहर की दूसरी वजह सामाजिक हो सकती है। शोध में यह भी पता चला है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि भी गुस्से में भूमिका अदा करती है। अकसर वे लोग जो कि आसानी से क्रोधित होते हैं वे ऐसे परिवार के लोग होते हैं जिनके परिवार के लोग अवरुध्द मानसिकता वाले, अक्सर परिस्थितियों को उलझाने वाले, और भावनात्मक सम्वाद में अनाडी या असक्षम हों ।

क्रोध को साधारणतया नकारात्मक माना जाता है, हमें सिखाया जाता है कि अपनी हताशा, व्यग्रता और अन्य भाव प्रकट करना तो सही है किन्तु गुस्सा जताना ठीक नहीं । परिणाम स्वरूप हम सीख ही नहीं पाते कि कैसे सही तरीके से गुस्से को लिया जाए और इस गुस्से को कैसे सही रचनात्मक दिशा दी जाए।
क्या आप भी बहुत क्रोधित प्रवर्ती के हैं?
हम अपने गुस्से की तीव्रता को कुछ फिजियोलॉजिकल टैस्ट की मदद से माप सकते हैं। जैसे कि आप गुस्से के प्रति कितने सम्वेदनशील हैं, और आप अपने गुस्से को कैसे संभालते हैं ? और अगर आप को बात बात पर क्रोध आने की समस्या है तो आप इस समस्या के समाधान के लिये इसकी गहराई तक जाकर चिन्तन मनन करना चाहिए | अगर आप क्रोध में स्वयं को आपे से बाहर पाते हैं तो आप को किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक की सहायता लेनी चाहिए | मनोवैज्ञानिक ही आपको बतलायेगा कि आप इस भाव से और अच्छे तरीके से कैसे निबटा सकते है । यहां यह पहचानना आवश्यक हो जाता है कि गुस्से की कितनी मात्रा सहज है और इसकी सीमा क्या हो | हर बात पर आपे से बाहर हो जाना बुध्दिमत्ता नहीं है ।
क्रोध को व्यक्त करने के तरीके—-

क्रोध को व्यक्त करने का प्राकृतिक तरीका है आक्रामक होना | किसी खतरे की प्रतिक्रिया में क्रोध एक नितान्त प्राकृतिक भाव है जो कि हमें अपनी शक्ति, आक्रामकता, अनुभूति और व्यवहार को अभिव्यक्त करने को प्रेरित करता है, जिससे हमें स्वयं पर होने वाले आक्रमण का सामना करने के लिये तैयार हो जायें ।सच्चाई यह भी है कि एक निश्चित मात्रा में क्रोध हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिये आवश्यक भी है | संदेह करने की आदत भी क्रोध को बढ़ाती है | क्रोध पर काबू पाने का एक रास्ता यह भी हो सकता है कि आप क्रोध की तीर्वता को अन्य दिशा में मोड़ दें ऐसा तब संभव है जब आप अपने क्रोध के बारे में सोचना छोड दें और अपनी ऊर्जा किसी अन्य सकारात्मक कार्य में लगायें, दूसरें शब्दों में अपने क्रोध को दबा कर या छिपा कर इसे सकारात्मक व्यवहार में बदल दें । किन्तु इस तरह की प्रतिक्रिया में खतरा इस बात का है कि अगर आप इसे बाहर सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से व्यक्त न कर सके तो यह छिपा क्रोध आपके अन्दर जाकर आप में हताशा, तनाव उत्पन्न कर उच्च रक्तचाप की वजह बन सकता है।

अभिव्यक्त न किया जा सका क्रोध अन्य कई समस्याओं को जन्म दे सकता है। यह किसी और तरीके से बाहर आएगा जैसे कि अक्रिय और सक्रिय आक्रामक व्यवहार या असंतुलित व हिंसक मानसिकता वाले व्यक्तित्व के रूप में।

प्रस्तुतिकरण—डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—-संत महात्माओं के प्रवचन, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न पत्र-पत्रिकाये आदि

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