एथेंस ओलम्पिक 2002 में रजत पदक जीतकर देश को गौरवान्वित करने वाले श्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ साहब के हाथ राजस्थान में स्वर्ण लग सकता है। कर्नल राठौड़ ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 2013 में की, जब उन्होंने सेना से सेवानिवृत्ति लेकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 2014 के आम चुनाव में श्री राठौड़ जयपुर ग्रामीण सीट से संसद पहुंचे और साथ ही मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय) के तौर पर शामिल किए गए। अपनी बेदाग छवि और बेमिसाल व्यक्तित्व के बलबूते राठौड़ युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय हैं।
उधर, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भाजपा आलाकमान की ‘हिट-लिस्ट’ में टॉप पर हैं, इसमे किसी को कोई संदेह नही। बीते दिनों में हुए उप-चुनावों में करारी हार इस बात को प्रमाणित करती है कि महारानी और प्रजा के संबंध भी कुछ ठीक नही हैं। अपना पूरा जोर लगाने और शासन तंत्र की चौतरफा परेड कराने के बावजूद महारानी के रणबांकुरे 17 में से 1 भी विधानसभा में जीत तो छोड़िए, टक्कर तक नही दे पाए (2 लोकसभा सीटें जिनमे 16 विधानसभा सीटें समाहित हैं, और एक मांडलगढ़ विधानसभा सीट)। भाजपा शीर्ष नेतृत्व का इस चुनाव से दूरी बनाना अपने आप में मतभेद का सूचक है। क्षेत्रीय नेताओं की बेरुखी भी सामने आने के बाद, भाजपा की वृहद मुख्यमंत्री परिषद की एकमात्र महिला, राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने अकेली ही नजर आ रही हैं। “मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी ख़ैर नहीं” सरीखे संदेशों से जनता ने भी यह ज़ाहिर कर दिया है कि पार्टी के साथ साथ जनता भी उनसे मुह मोड़ चुकी है।
यह तो लगभग तय है कि भाजपा अगला चुनाव महारानी के नेतृत्व में नही लड़ेगी, तो प्रश्न उठता है कि अगला नेता होगा कौन? चुनाव इसी साल होने हैं और हर गली मोहल्ले में चर्चा जोरों पर है कि इस बार भाजपा मुख्यमंत्री पद का दावेदार किसे बनाएगी? क्या महारानी का रसूख़ अब भी कायम है या बाकी राज्यों की तरह मोदीजी के नाम पर चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री ऊपर से टपकाया जाएगा। विगत वर्षों में धुरंधर नेता ओम माथुर और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी साहब का नाम खूब उछला है, पर मेरा मानना है कि “आउट ऑफ द ब्लू” जाकर कर्नल राज्यवर्धन को कमान सौंपी जा सकती है। आंनदपाल प्रकरण और पद्मावत विवाद के चलते, राजपूत वोटर हाल ही में भाजपा से अलग हुए हैं और उनके अलग होने का परिणाम भाजपा देख भी चुकी है, श्रीमती राजे का राखी बंधवाना भी काम न आया। ऐसे में राज्य की 6 फीसदी आबादी को रिझाने का यह अच्छा कदम हो सकता है। राठौड़ साहब मोदीजी की यूथ टीम के ‘कोर’ सदस्य हैं और हाल ही में उन्हें मंत्रिमंडल में मिला प्रमोशन इस बात का प्रमाण है। माना कि उन्हें कबीना मंत्री रैंक नही दिया गया है, पर खेल एवं युवा मामले जितने बड़े मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार अपने आप में कैबिनेट रैंक के बराबर है।
एक और बड़ा कारण है, सामने श्री सचिन पायलट का होना। पिछले कुछ अरसे में, अपने धुंआधार प्रचार अभियान की बदौलत पायलट साहब ने राजस्थान के राजनीतिक गलियारे में अपने पांव अंगद की तरह जमा लिए हैं। विकास पुरुष की उनकी छवि, बेबाक व्यक्तित्व और युवा जोश, उन्हें राज्य की राजनीति में सबसे अलग दिखाता है। कम से कम अजेमर जिले में तो पायलट की लोकप्रियता का आलम यह है कि भाजपा का वोटर भी उनके नाम पर कांग्रेस को वोट दे दे। इसमे कोई शक नही कि वे कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार हैं, और महारानी या माथुर साहब या परनामी जी, उनके सामने उतने बड़े दावेदार नही लगते। ऐसे में भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व अगर राठौड़ साहब को मैदान में उतार दे, तो कांग्रेस के “एक्स-फैक्टर” पर पार पा सकती है।
मानें या न मानें, लोकसभा-विधानसभा-राज्यसभा का कॉकटेल बनाना, बीते कुछ वर्षों में भाजपा की प्रवृत्ति में रहा है। श्री मनोहर पर्रिकर को गोआ विधानसभा से उठाकर रक्षामंत्री बनाकर वापस गोआ भेजना हो, या योगीजी को संसद से राज्यप्रमुख का रास्ता दिखाना हो, भाजपा के चाणक्य का जोड़ तोड़ में कोई सानी नही है। ऐसे में कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को जयपुर ग्रामीण से “सिविल लाइन्स” भेजना कोई आश्चर्यजनक बात नही होनी चाहिए।
कुर्सी की पेटी बाँध लें ज़नाब, 2018 का विधानसभा चुनाव किसी रोलर कोस्टर से कम नही होने वाला। और वाकई ऐसी चीजें निकल कर आ सकती है जिनकी आपने कतई उम्मीद न की हो।
बहरहाल, एक सीक्रेट तो वैसे मैंने उजागर कर दिया 🙂