क्या म्रत्यु पर आदमी खाली हाथ जाता है ?

डा. जे.के.गर्ग
याद रक्खें कि वर्तमान जीवन में हम जो भी कर्म करते हैं, यही कर्म हमारे भविष्य में होने वाले जन्मों में हमारा भाग्य बन बन जाते हैं, कर्मों के सिद्धांत के मुताबिक हमारे कर्मों का लेखा जोखा आने वाले जन्मों के लिये आरक्षित रहते हैं | निसंदेह मनुष्य को उसके वर्तमान जीवन में दोहरे काम करने होते हैं यानि जहाँ तक हमारे भाग्य का ताल्लुक है उसके बारे में तो हम कुछ भी करने में असमर्थ हैं किन्तु हमें अपने सत्कर्मों से हमारे भविष्य के लिये अच्छे भाग्य का बीजारोपण जरुर कर सकते हैं |

आध्यात्मिक जीवन की सफलता के लिये कर्म के सिद्धांत का ज्ञान होना आवश्यक है | जीवन जो भी कुछ भी होता है, उसके पिछे कोई कारण जरुर होता है | हमारी संस्क्रती में कर्म के सिद्दांत का विशेष महत्व है | कर्म के सिद्दांत के मुताबिक “ व्यक्ति के कर्म और भाग्य आपस में जुड़ें हुएं है, हर कार्य की प्रति क्रिया होती है (एव्री एक्शन हेज रीएक्शन टू) और आदमी को अपने कर्मों का फल आज नहीं तो कल उसे ही भोगना पड़ता है | इसलिए इन्सान को दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिये जैसा व्यवहार वह दूसरों से अपने साथ चाहता है |

सच्चाईयों में हमारे हर कर्मों के अंश की छाप हमारी आत्मा पर जरुर पड़ती ही है | इन्हीं कर्मों की प्रतिक्रिया हमारी चेतना प्रतिक्रिया देती है | याद रखिये आत्मा पर जितना अधिक हमारे कर्मों की छाप छोडी जायेगी ,हमें और हमारी आत्मा को उतने ही अधिक प्रतिक्रिया का भार ढ़ोना होगा | यह शारारिक कर्मों के साथ हमारे विचारों, सोच एवं हमारे मानस पटल पर भी नकारात्मक एवं सकारात्मक रूप में लागू होता है | यह बात भी सही है कि कभी कभी इन विचारों अथवा कर्मों की आत्मा पर छाप का प्रभाव या प्रतिकिर्या को व्यक्त करने में कई वर्ष यां तक अनेकों पीढियां गुजर जाती है | मनुष्यों में कर्म के सिद्धांत किसी की खुशी या गम और दुखों के साथ जोड़ कर भी देखा जाता है, वहीं कर्मों का सिद्धांत परमपिता परमात्मा से जुड़ने की सीढ़ी भी है |

हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है कि कर्म तीन प्रकार होते हैं यथा क्रियामान कर्म,प्रारब्ध कर्म और संचित कर्म |

क्रियामान कर्म—-मनुष्य अथवा प्राणियों के वर्तमान या मोजूदा जीवन से जुड़े कर्म यानि मनुष्य के दुवारा दिन-प्रतिदिन किये गये कर्म |

प्रारब्ध कर्म—–प्राणी दुवारा अतीत में अथवा पूर्वजन्मों के कर्म जिनका परिणाम हमें वर्तमान जीवन काल में मिल रहा है |

संचित कर्म—-प्राणी दुवारा अतीत या पूर्वजन्मों के कर्म जिसका हिसाब उसे भविष्य में जरुर देना ही होगा |

याद रखने लायक बात यही है कि हमारे हरएक कर्म का कोइ न कोइ उद्द्देश्य होता है जो कार्य को अंजाम देते हुये हमारी द्रष्टि या नजरिये को बाधित भी कर देता है | किन्तु सद्दकार्यों, सत्कर्मों एवं अच्छाईयों से मुहं नहीं मोड़ा जा सकता है | दान, दया, पारस्परिक सहयोग मदद और सात्विक कर्म एवं सात्विकता का पूण्य हमें किसी न किसी जन्म में पुण्य जरुर मिलेगा , आदमी को संतों और सात्विक सोच के लोगों के साथ रहना होगा | समाज में पारस्परिक प्रेम की अम्रत धारा की गंगा बहानी होगी | तीर्थस्थलों, पूजास्थलों के जाने का अपना महत्व है और परमपिता परमात्मा से जुड़ाव का काम करता है | इंसान को अपने कर्म निष्काम भाव से करते हुये अपने समस्त सात्विक कर्म परमात्मा को समर्पित करना चाहिये | निसंदेह कर्मों से मुक्ति का मार्ग सद्दगुरु,संतों के सान्निध्य में पाया जा सकता है |

ऐसा कहा जाता है कि प्राणी अथवा मनुष्य की म्रत्यु के बाद वो सारी धन सम्पदा यही छोड़ जाता है और खाली हाथ जाता है किन्तु वास्तविकता यह शतप्रतिशत सही नहीं है क्योंकि आत्मा अजर-अमर और अविनाशी है, आत्मा अपने साथ उसके दुवारा किये गये समस्त यानि सात्विक, राजसी और तामसी कर्मों का लेखा जोखा अपने साथ ही ले जाती है , आत्मा को किसी न किसी जन्म में इन कर्मों की पूर्ति करनी होती है |

कर्म के सिद्दांत के मुताबिक जब आत्मा नया शरीर ग्रहण करती है यानि जब नवजात शिशु जन्म लेता है तो वो दुनिया में खाली हाथ नहीं आता है वरण अपने साथ अपने प्रारब्ध के कर्म भी अपने साथ लाता है | सच्चाई तो यही है कि मनुष्य को हमेशा अपने जीवन में सात्विक कर्म और वो भी निष्काम भाव से करना चाहिये | यदा कदा देखा जाता है कि कभी कभी आदमी को आकस्मिक दुःख, कष्ट और पीड़ा भोगने पड़ते है | इसका उत्तर आदमी के प्रारब्ध के कर्मों से जुड़ा हो सकता है |

याद रक्खें कि वर्तमान जीवन में हम जो भी कर्म करते हैं, यही कर्म हमारे भविष्य में होने वाले जन्मों में हमारा भाग्य बन बन जाते हैं, कर्मों के सिद्धांत के मुताबिक हमारे कर्मों का लेखा जोखा आने वाले जन्मों के लिये आरक्षित रहते हैं | निसंदेह मनुष्य को उसके वर्तमान जीवन में दोहरे काम करने होते हैं यानि जहाँ तक हमारे भाग्य का ताल्लुक है उसके बारे में तो हम कुछ भी करने में असमर्थ हैं किन्तु हमें अपने सत्कर्मों से हमारे भविष्य के लिये अच्छे भाग्य का बीजारोपण जरुर कर सकते हैं | अत: जीवन को खुशहाल और आनन्दमय बनाने के लिये सात्विक कर्म करें,कभी भी दूसरों कष्ट नहीं दें , ना ही किसी के साथ षड्यंत्र रचे | अपने सारे कर्म निर्विकार रूप से करते हुये अपने सारे सात्विक कर्म परमपिता परमात्मा के श्रीचरणों में अर्पित कर दें |

प्रस्तुतिकरण—डा.जे.के.गर्ग

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