राष्ट्रवादी की खोज

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
आज के वक्त में राष्ट्रवाद शब्द की गलत तरीके से व्याख्या हो रही है राष्ट्रवाद के नारों के पीछे साम्प्रदायक विचारधारा पोषित की जा रही है और साम्प्रदायकता का पोषण भी धर्म के पोषण के लिए नही केवल राजनीतिक फायदे की द्रष्टि से ही किया जा रहा है पद की भूख मिटाने के लिए किया जा रहा है तो ऐसे विचारको के समूह के पास राष्ट्रवाद का कोई महत्व नही होता है ।
सीधे शब्दों में हम राष्ट्रवाद को समझने के लिए यह कह सकते है कि ” राष्ट्रवाद विचारधारा वह विचारधारा है जिस में केवल राष्ट्रहितार्थ विचारो के अलावा सभी विचार गौण माने जाते हो ”
अब आप देखकर सोचकर बताओ की इस राष्ट्रवाद में धर्म और जाति और वर्ग तथा क्षेत्र का स्थान कहाँ है ?
यदि आप राष्ट्रवादी है तो आपको केवल सम्पूर्ण राष्ट्रीय जनहितार्थ ही बात करनी होगी ।
और यदि आप केवल अपने धार्म को ऊपर उठाने की बात करते है तो आप इस कृत्य से धार्मिक हो सकते है राष्ट्रवादी नही ।
और आप किसी जाति के उपर उठाने की बात करते है तो आप किसी कबीले के सरदार हो सकते है राष्ट्रवादी नही ।
और आप किसी वर्ग को उठाने की बात करते है तो आप उस वर्ग के ठेकेदार हो सकते है राष्ट्रवादी नही ।
और आप राष्ट्रहित की अनदेखी कर के यदि आप केवल एक क्षेत्र को ऊपर उठाने की बात करते है तो आप राष्ट्रवादी नही आप राष्ट्रद्रोही जरूर है ।
किसी धर्म को ऊपर उठना , किसी जाति को ऊपर उठना और किसी वर्ग को ऊपर उठाना व किसी क्षेत्र को ऊपर उठाने वालो को राष्ट्रवादी नही कह सकते राष्ट्रवादी तो राष्ट्र को ऊपर उठाने वाले को कहते है ।
अब आपको तय करना है इस सम्पूर्ण राजनीतिक कुनबे में कौन राष्ट्रवादी है ?
मुझे तो कोई नही दिखाई दे रहा है !
मगर आज देश को जरूरत है ऐसे नेतृत्व की जो राग और द्वेषता को खत्म कर सके , धार्मिक उन्माद को खत्म कर सके और आज जरूरत है ऐसे राष्ट्रवादी की जो देश में प्रेम की जोत जन जन में जला कर देश को एक रख सके और हमे विकास की तरफ अग्रसर कर सके आज ऐसा ही कोई व्यक्तित्व असली राष्ट्रवादी कहला सकता है मगर उस राष्ट्रवादी व्यक्ति की खोज हमें करनी क्योकि यह खोज अभी बाकी है ।

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