निजता के किले का ध्वस्त होना

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व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त सबसे अनमोल और महत्वपूर्ण अधिकार है। निजता वह अधिकार है जो किसी व्यक्ति की स्वायतता और गरिमा की रक्षा के लिये जरूरी है। वास्तव में यह कई अन्य महत्त्वपूर्ण अधिकारों की आधारशिला है। लेकिन इनदिनों व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन की घटनाओं से आम आदमी डरा हुआ है। बात चाहे आधार की हो या स्मार्टफोन की या फिर फेसबुक की। एंड्राॅयड फोनों में सेंध लगाने के मामलों ने बहुत डरा दिया है। मूल प्रश्न है कि अपने मोबाइल को कैसे सुरक्षित बनाएं एवं आधार में दर्ज व्यक्तिगत सूचनाओं का दुरुपयोग नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है? इस तरह की आक्रामक दखलंदाजी की वजह से निजी जीवन की पवित्रता एवं निजता को बहुत नुकसान पहुंच सकता है। अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत के अनुसार- घर एक किला हुआ करता था। आज के इन प्रयासों ने इसे ध्वस्त कर दिया है।
सबसे बड़ा खतरा तो यह खड़ा हो गया है कि फोन आपके हाथ में है और कोई भी उस तक पहुंच बनाकर इस्तेमाल कर ले, जिसका आपको पता नहीं चलेगा। देश में लंबे समय से डाटा सुरक्षा को लेकर बहस चल रही, खासकर मोबाइल एवं आधार की सुरक्षा को लेकर। कुछ महीने पहले फेसबुक के करोड़ों ग्राहकों के डाटा लीक हो गए थे। हाल में ट्राई के अध्यक्ष ने अपना आधार नंबर सार्वजनिक कर उसकी सुरक्षा को चुनौती दी थी और हैक करने वाले ने उनके बैंक खाते तक पहुंच बनाकर दिखा दी थी। तो फिर कैसे माना जाए कि हमारे आधार के डाटा या मोबाइल पूरी तरह सुरक्षित है।
हमारे स्मार्टफोन, आधार एवं फेसबुक पर हमसे जुड़ी व्यक्तिगत जानकारियां और आंकड़े यानी डाटा लगता है अब वाकई सुरक्षित नहीं रह गए हैं। इसकी पोल हाल ही एक बार फिर उस वक्त खुल गई जब एंड्राॅयड फोन इस्तेमाल करने वालों को नई समस्या का सामना करना पड़ा। कई लोगों के मोबाइल फोन में आधार कार्ड बनाने वाले प्राधिकरण-यूआईडीएआई का हेल्पलाइन नंबर अपने आप सेव हो गया। इससे लोगों में सनसनी फैल गई। सवाल था कि जब फोन में कोई नंबर सेव नहीं कर रहा, तो वह अपने आप संपर्क सूची में कैसे सुरक्षित हो गया। सोशल मीडिया के जरिए यह खबर आग की तरह फैल गई और तमाम एजेंसियां और मोबाइल आॅपरेटर कंपनियां हरकत में आ गई। मामला तूल पकड़ते देख यूआईडीएआई को सफाई देते हुए स्पष्ट करना पड़ा कि इस तरह का कोई भी नंबर सेव करने के बारे में उसने किसी आॅपरेटर या संस्था को निर्देश नहीं दिया है। उसने साफ किया कि उसका एक ही हेल्पलाइन नंबर है, जो पिछले दो साल से काम कर रहा है। जो पुराना नंबर लोगों के मोबाइल में अपने आप सेव हुआ वह पुराना था और अब बंद हो चुका है। यह घटना निजता की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे की आहट है।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दरअसल निजता का अधिकार हमारे लिये एक आवरण की तरह है, जो हमारे जीवन में होने वाले अनावश्यक और अनुचित हस्तक्षेप से हमें बचाता है। यह हमें अवगत कराता है कि हमारी व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक हैसियत क्या है और हम स्वयं को दुनिया से किस हद तक बाँटना चाहते हैं। वह निजता ही है जो हमें यह निर्णित करने का अधिकार देती है कि हमारे शरीर पर किसका अधिकार है? आधुनिक समाज में निजता का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। फ्रांस की क्रांति के बाद समूची दुनिया से निरंकुश राजतंत्र की विदाई शुरू हो गई और समानता, मानवता और आधुनिकता के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित लोकतंत्र ने पैर पसारना शुरू कर दिया।
अगर निजता के अधिकारों के साथ समझौता होता है, तो जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों पर संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। दशकों से जारी बहस और एक के बाद एक मामलों की परिणति से ये तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों का हिस्सा बता कर निजता की बहस को ऐतिहासिक मोड़ दिया है। हालांकि पहले से ही व्यक्तिगत मामलों में सरकार की दखल को निजता के हनन के रूप में देखा जाता है। भले ही सरकार इस तरह के दखल को नकार रही हो।
निजता के हनन की बढ़ रही स्थितियों एवं उनको लेकर आम जनता में व्याप्त होते आक्रोश को देखते हुए सरकार भी हरकत में आयी है। यही कारण है कि देश के मोबाइल फोन यूजर्स की सिक्योरिटी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कड़ा कदम उठाया है। सूचना एवं प्रद्यौगिकी मंत्रालय (आईटी मिनिस्ट्री) ने स्मार्टफोन कंपनियों के लिए नोटिस जारी किया है। इस नोटिस में सरकार ने कंपनियों से पूछा है कि आखिर उनके स्मार्टफोन में यूजर्स के डेटा को लेकर क्या सुरक्षा इंतजाम हैं।
खबर है कि मोबाइल हैंडसेट से डेटा चोरी करके तीसरे देश को भेजा जा रहा है। भारत में ज्यादातर चीन की मोबाइल फोन कंपनियां हैंडसेट बेंचती हैं और इन ब्रांड के सर्वर तीसरे देश में होते हैं। ऐसे में अगर डेटा चोरी होता है तो ये यूजर्स के लिए बड़ा नुकसान साबित होगा। सभी कंपनियों को सुरक्षा उपायों की जानकारी सरकार को देनी होगी।
देश की शीर्ष अदालत तक इस बारे में सवाल खड़े कर चुकी है और हर बार संबंधित प्राधिकरण ने इसे सुरक्षित ही करार दिया है। लेकिन यूआईडीएआई का हेल्पलाइन नंबर अपने आप सेव होने की घटना ने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब आसान नहीं है। इससे स्मार्ट डिवाइसों की सुरक्षा आशंकाओं के घेरे में आ गई है। पहला सवाल तो यही उठ रहा है कि कहीं आधार नंबर लीक हो गया और किसी के हाथ लग गया तो क्या होगा? आज पैन नंबर, मोबाइल नंबर, बैंक खाते सब आधार से जुड़ रहे हैं। यानी सारी संवेदनशील जानकारियां आधार से जुड़ी हैं। अगर फोन में नंबर अपने आप सेव हो जाता है तो समझिए कि आपके फोन में रखे फोटो, वीडियो या चैटिंग तक कोई भी पहुंच बना लेगा। एंड्रॉयड स्मार्टफोन का इस्तेमाल जितना अधिक किया जाता है उतने ही उसकी सुरक्षा पर सवाल खड़े होते रहे हैं। डिवाइस को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका खुद अपने गैजेट्स को लेकर अलर्ट रहना होता है। लेकिन कभी-कभी हमें पता नहीं चलता की कोई हमारी निजी जानकारी में सेंध लगाए बैठा है।
इनदिनों कुछ शरारती तत्व एवं हैंकर भी सक्रिय हंै जो इस तरह की नितांत व्यक्तिगत जानकारियों तक अपनी पहुंच बनाने एवं उनको सार्वजनिक करने की धमकी देते हुए मोटी रकम देने की शर्त रखने लगे हैं। इस तरह व्यक्तिगत सूचनाओं को सार्वजनिक करने की कुचेष्टा किसी की चरित्र हत्या के लिये काफी है तो इस समाज में कोई भी आदमी सुरक्षित नहीं है। डरे हुए लोगों को और अधिक डराकर उनके जीवन को आतंकित करने का षडयंत्र चल रहा है। इन स्थितियों पर समय रहते यदि नियंत्रित नहीं किया गया तो एक विस्फोटक एवं अराजक स्थिति बनने की संभावना है। भले ही गूगल ने किसी भी तरह के खतरे की आशंका से इनकार किया है। लेकिन सवाल घूम-फिर कर वहीं आ जाता है कि गूगल, फेसबुक आदि में हमारे निजी डाटा कितने सुरक्षित है? डेटाबेस में किसी भी प्रकार की सेंधमारी भयावह तबाही खड़ी कर सकती है। तमाम आश्वासनों के बावजूद ऐसी स्थिति में नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्षतिपूर्ति की कोई गारंटी नहीं मिलती। सरकार निजता व गोपनीयता के अधिकारों के लिए ठोस सुरक्षा का भरोसा नहीं दिला सकी है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने मजबूत डेटा संरक्षण तंत्र के गठन के मुद्दे पर सरकार से कई बार सवाल किया है। आवश्यकता है कि निजता और डेटा संरक्षण के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ सुरक्षा के मानक तय करने होंगे, जिससे करोड़ों नागरिकों की गोपनीयता और व्यक्तिगत जानकारियांे की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इसके लिए सरकार को अनेक स्तरों पर ठोस और त्वरित कदम उठाने की जरूरत है।
देश डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है, ऐसे में जन निगरानी प्रौद्योगिकी पर आधारित ‘आधार’ की भूमिका निश्चित ही महत्वपूर्ण है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, विभिन्न सेवाओं का प्रभावी वितरण और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में इस तकनीक में बड़ी संभावनाएं नजर आती हैं, लेकिन निजता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर इस योजना के समक्ष अनेक अनसुलझे सवाल हैं। देश में हर साल 20-22 करोड़ हैंडसेट बिकते हैं जिसकी कीमत करीब नब्बे हजार करोड़ रुपये होती है। देश की बड़ी आबादी इन दिनों चीनी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती है। हाल ही में बढ़ते साइबर हमले और हैकिंग ने दुनियाभर के सामने साइबर क्राइम को एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। ऐसे में सरकार का देशभर के यूजर्स की सिक्योरिटी लिये जागरूक होना एवं कड़े कदम उठाना काबिलेतारीफ है।

(ललित गर्ग)
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