मेरी बैचेनियों को कभी,
समझो तुम तो कोई बात हो,
मेरी सांसो की मन्थर गति को,
समझो तुम तो कोई बात हो,
तुम जो समझो राधे सी बन,
तडप को श्री कृष्ण की,
जो भी मेरे ह्दय में हैं भावना बस,
समझो तुम तो कोई बात हो।
तुम ना समझी मुझको कभी,
अब समझ लो तो कोई बात हो,
बात हो वैराग्य की तो,
साध्वी सा स्थिर चित्त,
मीरा सा प्रेम समझ लो,
समझो तुम तो कोई बात हो,
सब समझने का भी काम,
हमने ही किया सदा,
“पाठक” की धडकन समझ लो,
समझो तुम तो कोई बात हो।
त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”