गांधी और मेरे एहसास

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर (पश्चिम बंगाल)

तारकेश कुमार ओझा
80 के दशक में जब गांधी फिल्म रिलीज हुई थी तब तक देश में बॉयोपिक
फिल्मों का दौर शुरू नहीं हुआ था। तत्कालीन युवा पीढ़ी के लिए फिल्में
देखना भी इतना सहज नहीं था। चोरी – छिपे फिल्में देखने वाले युवकों की
पता चल जाने पर घर में मार – कुटाई होती थी। तब मैं छात्र था और इस फिल्म
को लेकर मेरे मन में भी भारी कौतूहल व्याप्त हो गया। आखिरकार फिल्म देखने
के लिए मैने एक तरकीब निकाली और अपने सख्त मिजाज स्वर्गीय पिता तक यह बात
पहुंचाई कि महात्मा गांधी पर फिल्म आई है जो टैक्स फ्री भी है। फिल्म
काफी भव्य है और इसे विदेशी लोगों बनाई है। तरकीब काम कर गई और पिताजी ने
भी फिल्म देखने की इच्छा जाहिर कर दी। यह गांधीजी का करिश्मा था जिसके
चलते जीवन में पहली और आखिरी बार मैने कोई फिल्म अपने पिताजी के साथ बैठ
कर देखी।

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