वक़्त की शाख़ पर

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
वक़्त की शाख़ पर

खिला हर इक गुल

ढूँढता है माली को

हमदम जो उसे बना ले

ऊँचे गुलमोहर की छाँव में

अपनी झुकी डाली पर

हैरान परेशान वो

कोई अंजान साया उसे नज़र आता है

हर अंजाम से बेख़बर

अपनाने की तमन्ना लिए

भारी निगाहों से

बस तलाशता नज़र आता है

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत

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