नदी किनारे रेत पर

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
नदी किनारे रेत पर

ढूँढता हूँ बचपन के निशान

सख़्त गर्मी की शामों में अक्सर

रेत पर बैठकर ठंडी वयार

और शीतल लहरों का आनंद लेना

ढलते सूरज की लालिमा में सराबोर

संध्यासुख में खो जाना

नदी में पत्थर फेंक कर

बुलबुलों को गिनना

रेत हवा में उछालना

और फिर सिर से कंकड़ साफ़ करना

है जीवंत क़िस्सा ये मेरे बचपन का

काश………..

नदी किनारे रेत पर

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
हैदराबाद

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