राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर का ठीकरा विधायकों पर फोड़ना भाजपा की भूल होगी

*भाजपा करीब सौ विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव खेलने की बना रही है रणनीति*

तिलक माथुर
राजस्थान में पिछले 20 सालों से जनता के मिजाज और विधानसभा में दोबारा जीतकर पहुंचे विधायकों की संख्या के ट्रेंड के मद्देनजर व राज्य में एंटी इनकम्बेंसी को देखते हुए भाजपा करीब 100 विधायकों के टिकट काट कर नए चेहरों पर दांव खेलने की रणनीति बना रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि राज्य के अधिकांश भाजपा विधायकों की उनके क्षेत्र में अच्छी परफॉर्मेंस न होने की वजह से राज्य में भाजपा विरोधी लहर बनी है। मीडिया के सर्वे में भी भाजपा की स्थिति बेहद खराब बताई गई है सर्वे के अनुसार भाजपा को 60 सीटों से ज्यादा नहीं मिल रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा करीब सौ विधायकों के टिकट काटने पर विचार कर रही है। राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भाजपा एक साथ इतने विधायकों के टिकट काटती है तो यह भाजपा की सबसे बड़ी भूल होगी और भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। क्योंकि इन विधायकों ने पूरे पांच साल अपने क्षेत्र में काम किया है तथा दुबारा चुनाव लड़ने के लिए जी जान से मेहनत की है। अगर इनका टिकट कटता है तो क्या ये खामोश बैठेंगे क्या गारंटी है कि वे नए उम्मीदवार की कार सेवा नहीं करेंगे। हां यह हो सकता है कि कुछ विधायकों ने अपने क्षेत्र में काम नहीं किया हो उनका टिकट काटना वाजिब है। इन विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में भाजपा विरोधी लहर का जिम्मेदार केवल विधायकों को ही ठहराना उचित नहीं है जबकि वास्तव में यह विरोध मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यशैली उनका रूखापन, विधायकों को लिफ्ट न देना उनसे नहीं मिलना, कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं देना, मंत्रियों की उनके ही विभाग में ही न चलना, अधिकारियों द्वारा मंत्रियों की बात नहीं मानना, नोट बन्दी व जीएसटी से व्यापारियों की नाराजगी, सरकारी कर्मचारियों का नाराज होना सबसे बड़ा कारण है। लोगों की सबसे बड़ी नाराजगी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से है अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व समय रहते राजस्थान में मुख्यमंत्री बदल देता और इस चुनाव में मुख्यमंत्री का नया चेहरा सामने लाता तो शायद बात बन सकती थी। खैर अब तो बहुत देर हो चुकी है अब डेमेज कंट्रोल मुश्किल लगता है। वैसे भी पिछले 20 साल से राजस्थान में सत्ता परिवर्तन की परंपरा चली आ रही है जिसे तोड़ना आसान नहीं है। 6 महीने पहले ही उपचुनावों में मतदाता भाजपा को हराकर अपने मूड का संकेत दे चुका था लेकिन भाजपा ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तथा डेमेज कंट्रोल करने के प्रयास तक नहीं किये अब चुनाव के ऐनवक्त डेमेज कंट्रोल सम्भव नहीं। हालांकि भाजपा सत्ता में लौटने के लिए अब किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है। भाजपा अपने चमत्कारिक नेता नरेंद्र मोदी के भरोसे फिर से सत्ता में आने का सपना देख रही है। लेकिन मोदी भी इतने बड़े डेमेज को इतने कम वक्त में कैसे कंट्रोल कर सकते हैं। राजनीति के चाणक्य मने जाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के भी पासे कोई काम नहीं कर रहे कार्यकर्तओं में उत्साह की भारी कमी है। इन सभी स्थितियों के मद्देनजर भाजपा ने अगर सही रणनीति से टिकट वितरण नहीं किये तो फिर उसे दुबारा सत्ता में आने की कल्पना छोड़ देनी चाहिए।

तिलक माथुर
केकड़ी_राजस्थान
*9251022331*

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