न रख इतना नाज़ुक दिल

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
इश्क़ किया तो फिर न रख इतना नाज़ुक दिल

माशूक़१ से मिलना नहीं आसाँ, ये राहे-मुस्तक़िल२

तैयार मुसीबत को, न कर सकूँगा दिल मुंतकिल३

क़ुर्बान इस ग़म को तिरि ख़्वाहिश४ मिरि मंज़िल

मुक़द्दर५ यूँ सही महबूब तिरि उल्फ़त६ में बिस्मिल७

तसव्वुर८ में तिरा छूना हक़ीक़त९ में हुआ दाख़िल

कोई हद नहीं बेसब्र दिल जो कभी था मुतहम्मिल१०

गले जो लगे अब हिजाब कैसा हो रहा मैं ग़ाफ़िल११

तिरे आने से हैं अरमान जवाँ हसरतें हुईं कामिल१२

हो रहा बेहाल सँभालो मुझे मिरे हमदम फ़ाज़िल१३

नाशाद१४ न देखूं तुझे कभी तिरे होने से है महफ़िल

कैसे जा सकोगे दूर, रखता हूँ यादों को मुत्तसिल१५

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

शब्दार्थ:
१. माशूक़ – प्रेमिका २. राहे-मुस्तक़िल – दृढ़ रास्ता ३. मुंतकिल – एक के नाम से हटाकर दूसरे के नाम करना ४. ख़्वाहिश – अभिलाषा ५. मुक़द्दर – भाग्य ६. उल्फ़त – प्रेम ७. बिस्मिल – घायल ८. तसव्वुर – कल्पना ९. हक़ीक़त – वास्तविकता १०. मुतहम्मिल – सहनशील, बरदाश्त करने वाला ११. ग़ाफ़िल – बे-सुध १२. कामिल – पूरा होना १३. फ़ाज़िल – विद्वान १४. नाशाद – दुःखी, नाखुश १५. मुत्तसिल – नज़दीक, पास

error: Content is protected !!