शेर का राज

हेमंत उपाध्याय
एक घने जंगल में खूब आँंधी तूफान चल रहा था। बारिश से तबाही मची थी। सभी शाकाहारी जानवर एक छोटी सी पहाड़ी पर एकत्र हो गए थे। इसी दौरान एक बब्बर शेर एक विशाल ईक्का खींचकर लाया और सब जानवरों को हाथ जोड़ कर कहा- आपकी सुरक्षा का दायित्व मेरा है। मैं आपका राजा हूँ । इस जंगल का राजा हूँ। आप सब इस ईक्के में बैठ जावें, मैं आपको सुरक्षित स्थान पर ले चलता हूँ। पड़ोस के देश से अंँधाधुंध फायरिंग हो रही है ।आप सब विस्फोट में बेमोत मारे जावोगे । पड़ोस के खतरे की बात सुनते ही सब दहशत में आ गए और सब तैयार हो गए। दुश्मन के हाथों मरने से अच्छा है अपने राजा के साथ जाना। शेर ने हाथी, ऊंँट व जिराफ के वजन व शक्ति को देखा व तौला तो मन में सोचा, ये तो काम के न काज के दुश्मन अनाज के और कहा – आपको अगले फेरे मैं ले चलूँगा तब तक आप यहीं विश्राम कीजिए। अन्य छोटे-मोटे शाकाहारी जानवरों को ईक्के में बैठाकर बब्बर शेर रवाना हुआ। सब एक स्वर में जयकारे लगाने लगे जंगल के राजा की जय । हमारा नेता कैसा हो बब्बर शेर जैसा हो । कईं तरह के नारे बार – बार लगने लगे । शेर ने कहा- मैं नारों का भूखा नहीं हूँ । मैं तो आपके जंगल का और अपका सेवक हूँ । बहुत जयकारे लग चुके अब आप सब आराम से सो जाएँं । ठीक वैसे ही जैसे बस या रेल में यात्री ड्राइवर के भरोसे निश्चिंत हो, सो जाते हैं। सब सो गए । ईक्का बब्बर शेर ने अपनी गुफा में ले जाकर ही रोका। गाड़ी अंदर जाते ही बब्बर दादा के गुर्गोंं ने गुफा के द्वार को पत्थरों से सील कर दिया। फिर अंदर क्या हुआ होगा सब जानते हैं। मेहनत से एक शिकार पाना मुश्किल होता था । इस लिए नेता “दिमाग से राजनीति करते हैं मेहनत से नहीं।”

हेमंंत उपाध्याय . व्यंग्यकार व लघुकथाकार.गणगौर साधना केंद्र. साहित्य कुटीर पं राम नारायण उपाध्याय वार्ड 43 खण्डवा म.प्र . 450001 [email protected] [email protected]

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