बेटी ने नीचे मुंह कर दबी आवाज में पिताजी से कहा-‘‘ का़ॅलेज में मेरी कक्षा में नगर सेठ का एकलौता लड़का मेरे साथ पढ़ता है, जो मुझे बहुत चाहता है और मुझसे शादी करना चाहता है। वो भी मेरी तरह पढ़ाई में भी होशियार है, संस्कारवान है। ऊँचे घर व अपने से ऊँची जात का भी है । पापा- आपकी इज़ाजत मिलेगी तो वो विधिवत बारात लाकर मुझसे शादी कर लेगा। आपकी शान बढ़ जावेगी।
पिताजी ने कहा-‘‘मेरी इज्ज़त बेचकर मैं अपने समाज के खिलाफ विवाह के लिए इज़ाजत नहीं दे सकता। कल से काॅलेज जाना बंद करो। तुम्हारे लिए मुम्बई से प्रस्ताव आया है। महानगर में अपने समाज वालों के बीच रहना। मैं शादी की तारीख निकलवाता हूँ। लड़के का आॅटो का व्यवसाय है।
आज शादी को 8 साल हो गए। उसका पति आज भी आटो चलाता है। झोपड़ पट्टी में रात को आटा और सब्जी लेकर आता है तब जाकर खाना बनाने के बाद पति खा पीकर व पतिवृृृता पत्नी
बचा हुआ खाकर दोनों 36के आंकड़े जैसे सो जाते है।
यही नहीं निकम्मे शराबी देवर की पत्नी एक नन्ही़ं बच्ची को दूध पिता छोड़कर दूसरे के साथ चले जाने से उसकी बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी भी उसी ने ले ली थी। स्वयं की कोई संतान भी नहीं थी। देवर की बच्ची को सगी बेटी से ज्यादा प्यार करती व उसकी देखभाल करती थी।देवर पत्नी के वियोग में गले-गले तक पीता था, सो वो असमय चल बसा। अब अपने शराबी पति के भरोसे देवर की लड़की को छोड़ कर वापस मायके भी नहीं जा सकती और न ही उस नगर सेठ के एकलौते पुत्र से शादी कर सकती , जो कि उसके भरोसे अभी भी बैठा है।
इधर नन्ही़ं बच्ची उसे ही असली माँ समझती है। महिला की सोच है कि अब उस बच्ची को छोड़कर गई तो उसकी परवरिश असंभव हो जावेगी और बच्ची का माँ पर से विश्वास उठ जाएंगा। अतः उसने बदहाल में मुम्बई की झुग्गी झोपड़ी में ही रहने का प्रण कर लिया।
उस महिला ने बच्ची के भविष्य की चिंता में तपस्या की व अपने सुख को त्याग कर बच्ची के सुख को सर्वोपरि माना। मैं तो इसे ऋषि मुनि से बड़ा त्याग और तपस्या मानता हॅू।
हेमंत उपाध्याय
गणगौर साधना केन्द,साहित्य कुटीर, पं0रामनारायण उपाध्याय वार्ड
खण्डवा म0प्र0