चौकीदार पुराण

शिव शंकर गोयल
वह युगल जोडी भी प्रहरी ऊर्फ चौकीदार ही थी. उनके नाम थे, जय-विजय. श्रीमद भागवत के तीसरें स्कंध-अध्याय में वर्णित कथा है, जिसे शुकदेवजी महाराज ने पांडवों के वंशज राजा परिक्षित को सुनाई थी जो सातवे दिन अपनी आसन्न मृत्यु की प्रतिक्षा कर रहे थे.
कथा कुछ यों है. एक बार जय-विजय वैकुन्ठ द्वार पर पहरा दे रहे थे. तभी भगवान से मिलने ऋषि, सनत कुमारों का आना हुआ. पहचान के बावजूद उन्हें चौकीदारों ने रोका तो उन्होंने जय-विजय को श्राप दिया कि तुम लोग हर युग में राक्षसों के रूप में पैदा होओगे और तुम्हारा उध्दार ईश्वर के अवतारों द्वारा होगा.
और युगांतर में हुआ भी यही. सतयुग में दोनों चौकीदार हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु दानव नाम से हुए जिन्होंने घमंड, मनमानी और नफरत की जब अतिश्योक्ति करदी तो उनका उध्दार क्रमश: वराह और नृसिंह अवतार के हाथों हुआ.
त्रेता युग में वह प्रहरी रावण एवं कुंभकर्ण राक्षस के नाम से हुए और समय पाकर भगवान राम के हाथों इन्होंने अपनी गति पाई.
द्वापर में दोनों चौकीदार कंस और शिशुपाल नाम से हुए और कृष्ण के हाथों इनका कल्याण हुआ.
कुछ कथा भक्तों का यहां तक कहना है कि चौकीदारों की यह परम्परा कलियुग में भी चली आई है. हां नाम अवश्य बदल गए होंगे. देखते है कि इनका उध्दार किस के हाथों होता है ? अपने कथन के समर्थन में कथाकारों का कहना है कि गीता के चौथें अध्याय के सातवे श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कह रहे है कि “यदा यदा हि धर्मस्य….” अर्थात हे ! अर्जुन जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृध्दि होती है तब तब मैं अपने आप को साकार रूप से प्रकट करता हूं. सम्भव है कि कलियुग में कल्कि अवतार हुआ हो, कौन जाने ?
शिव शंकर गोयल

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