ऐसा लगता है,न्यूज चैनलों ने कांग्रेस और इसके नेताओं को निपटाने की सुपारी ली है? एंकर और रिर्पोटर पता नहीं सुबह-सुबह क्या पीकर आते हैं कि दिन भर बोलने की जगह चीखते हैं और बहस में कोई नेता या एक्सपर्ट कांग्रेस के पक्ष में कुछ बोल दें,तो उसके कपड़े फाडने लग जाते हैं।
किसी नेता ( प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) या पार्टी (भाजपा) की इतनी तारीफ (या गुलामी) बीते दो दशकों मे मीडिया,विशेष रूप से,इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने शायद ही किसी और की करी ह़ो। पत्रकार हो तो निष्पक्ष रहिए। खबर बताइए ,लोगों पर अपने विचार क्यों थोपते हो। अपना एजेंडा लोगों की इच्छा क्यों बताते हो? चलिए मान लिया कांग्रेस ने देश को बर्बाद कर दिया । देश की सभी समस्याओं की जड़ कांग्रेस है । तो लोगों ने उसे सबक भी तो सिखा दिया और लोकसभा में 42 सीटों पर ले आए और उसके पास महज चार राज्यों में सत्ता रह गई है। अभी भी अगर कांग्रेस वैसी ही है तो इस बार भी मतदाता उसे बख्शेगा नहीं । एंकर और रिपोर्टर क्यों जज की भूमिका में आ जाते हैं ।
क्या लोकतंत्र में सरकारों का चुनाव मीडिया करेगा? क्या लोग यह बात समझते नहीं है कि चैनलों पर बहस मुद्दों पर नहीं ,मुद्दों से भटकाने वाले विषयों पर की जा रही है । क्या मतदाता यह नहीं समझता है कि किसका प्रचार ज्यादा करने से चैनल मालिकों को लाभ मिलेगा ? क्या उसे नहीं पता कि मीडिया एक पक्षीय क्यों हो रहा है? कभी कहा जाता था कि मीडिया सरकार का स्थाई विपक्ष होता है । लेकिन अब लगने लगा है कि मीडिया सरकार का ही एक अंग होता है । हर चैनल का अपना एजेंडा है । हर एंकर की अपनी विचारधारा है। जिसे वह देश की इच्छा बताकर जनता पर थोपना चाहते हैं। शायद इसीलिए मीडिया पर लोगों का भरोसा अब कम होता जा रहा है और उसकी विश्वसनीयता पर आंच आने लगी है।
ओम माथुर/935141379