राम लाल के रोज डे

सीमा “मधुरिमा”
राम लाल जी एक अच्छे लेखक थे अक्सर उनके मुद्दे सम सामयिक विषयों पर होते । राम लाल अस्सी बरस के हो चले थे पर दिखते साठ वर्ष के ही थे । चेहरे पर हमेशा मधुर मुस्कान, वी. पी., सुगर की समय पर दवा खाते और ढेरों चाहने वालों से अक्सर सोशल मीडिआ पर मुख़ातिब रहते खासतौर पर महिलाओं से ।

महिलाओं से बात करने की उनकी रूचि के बारे में उनकी धर्मपत्नी भी जानती थीं और बोलती भी कि महिलाओं के चक्कर में ज्यादा न पड़ा करो आप …कभी धोखा भी खा जाओगे ….पर राम लाल का दिल था की मानता ही न था …पत्नी से बोलते, तुम नहीं समझती हो … ये महिलायें ही तो हैं जो मेरी पहचान को बनाये रखती हैं ….”अक्सर बड़े बड़े लेख लिखती हैं मेरी तारीफ़ में और देखो मुझपर कितना विश्वास भी करती हैं …मुझे ख़ुशी होती है मेरी लिस्ट में इतनी प्रबुद्ध महिलाये हैं और इनबॉक्स में थोड़ी बहुत मजाक तफरी तो चलती है न जानेमन, इससे मुझे और ऊर्जा मिलती है ।”

राम लाल अक्सर अपनी बातों के जादू से अपनी श्रीमती जी को प्रभावित कर लेते थे। आज रोज डे था । राम लाल वैसे तो स्वभाव से बड़े कंजूस थे पर आजकल फेसबुक पर उनकी नई मित्र बनी थीं संजीता नाम की महिला । उसके प्रति उनके मन में कुछ अलग सा लगाव महसूस होने लगा था। वो थी भी तो इतनी आकर्षक, बिल्कुल गुलाब जैसा ही दिखता था उसका मासूम चेहरा । पिछले पाँच दिनों पहले ही वो उनकी मित्रता सूची में जुड़ी थी पर लगता था उससे उनका जन्मों जन्मांतर का संबंध था हालाँकि वो उनकी पोती पिंकी के उम्र की ही थी ….पर क्या फर्क पड़ता है ….राम लाल को जब भी संजीता की उम्र का ख्याल आता …..उनको फिल्म निशब्द याद आ जाती जिसमे अमिताभ जी का अपनी बेटी की सहेली से लगाव दिखाया गया था, तब राम लाल सोचते ,….क्या फर्क पड़ता है हमारी उम्र क्या है ….वो मुझे समझती है और मै उसे यही तो चाहिए दो लोगों के बीच … ये उम्र, बड़ी छोटी …ये सब चोचले बेकार के हैं।

आखिर रोज डे आया और राम लाल के मन में संजीता से रूबरू होने का एक अवसर भी । उनके लिए तो सबसे बड़ी ख़ुशी यही थी कि उसने मिलने कि स्वीकृति दे दी थी । फिर क्या था राम लाल का दिल बल्लियों उछल रहा था । उनको लग रहा था जैसे उनको जीवन का पहला प्यार हुआ है । जाने कैसे कैसे ख्यालों से उनका मन रोमांचित हो उठता था । अब बस यही लग रहा था कैसे दोपहर के बारह बजे और वो उस निर्धारित पार्क में जा पहुंचे जहाँ उसने उन्हें बुलाया था । राम लाल सुबह जल्दी उठे ।
सिर पर बाकी रह गए दो चार बालों में आज कई वर्ष बाद रंग लगाया । आखिर उनकी पत्नी पूछ बैठी, “क्या बात है आज बड़े ख़ुश नजर आ रहे हो ….कहाँ कि तैयारी है?”
वो बोले, “अरे कहीं की भी नहीं । पिछले तीन महीने से बिजली के बिल का भुगतान नहीं किया है सोच रहे हैं जाकर आये, नहीं तो न जाने कब बिजली वाले धमक जाये और कनेक्शन काट दें,”

राम लाल से अपना सबसे बढियाँ सूट निकला, नहा धोकर तैयार हुए और खुद को शीशे में बार बार निहारा । कभी पत्नी के सम्मुख तो कभी पत्नी से नजर बचाकर । अपने झूठ को सच में बदलने के लिए उन्होंने तिजोरी से पच्चीस हजार रूपये भी ले लिए जो बिजली बिल के लिए था । ठीक ग्यारह बजे वो घर से निकल गए और रास्ते में कई फूलों की दुकानों से मोल तोल करके आखिर ढ़ाई सौ रुपए का एक गुलाब का गुच्छा ले ही लिए ।

हालाँकि इतने महंगे फूल उन्होंने कभी अपनी धर्मपत्नी को भी नहीं दिए थे । राम लाल को फूल महंगे लेने का कोई पछतावा भी न था क्योंकि आखिर उनकी मित्र भी तो अनमोल थी और न जाने कितने मित्रों का प्रस्ताव ठुकराकर उनसे मिलने की स्वीकृति दी होगी । वो खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझने लगे थे । आखिर वो पहुँच ही गए निर्धारित पार्क में ।

पार्क ढेरों उत्साहित प्रेमी जनों से भरे पड़े थे । सभी बहुत ख़ुश नजर आ रहे थे, सबके चेहरे खिले हुए थे लोग तरह तरह के गुलाब लिए अपने अपने प्रेमी जनों को रिझाने में लगे हुए थे । राम लाल भी अपने साथी का इन्तजार कर रहे थे । इन्तजार बहुत पीड़ा दे रहा था । एक एक पल सदियों सा लग रहा था । हालाँकि मित्र से प्रथम मुलाक़ात का रोमांच भी था ।

आधे घंटे बाद एक साथ तीन देवियाँ जाने कहा से प्रकट हुयीं और चारों ओर से राम लाल को घेर लिया ।
पहली बोली “रंगीले बुड्ढे जितने भी पैसे हैं तुम्हारे पास सब निकाल” राम लाल अवाक से रह गए और बोले, “कौन हो तुम लोग”
दूसरी लड़की बोली “बुड्ढे ज्यादा चूं चपड़ किया न तो देख उधर पुलिस खड़ी है …अभी मनवाती हूँ तेरा रोज डे ….तु चक्की पिसेगा इस उम्र में”

अब तक राम लाल की सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी । इस तरह की मुसीबत की कल्पना भी रामलाल ने नहीं की थी । उन्होंने चुपचाप इस मुसीबत के आगे खुद को सरेंडर कर दिया । अब उनके पास घर जाने के लिए किराया तक न बचा था । वो लड़कियाँ उनका मोबाइल तक उठा ले गयी ….ये तो गनीमत थी कि उनका सिम निकालकर वापिस कर गयीं ।

राम लाल किसी तरह घर पहुंचे और धर्मपत्नी को पहले से गढ़ा हुआ किस्सा सुनाया… कैसे वो बेहोश होकर गिर गए और लोगों ने इस हालत में उनको लूट तक लिया किसी को किसी की नहीं पड़ी है लोग मजबूर व्यक्ति का फायदा उठाने से नहीं चूकते ।

राम लाल को महीनों लगे सदमे से वापिस आने में ….एक दिन उन्होंने उस लड़की का प्रोफाइल चेक किया तो वहाँ से उसकी फोटो गायब थी और लास्ट पोस्ट रोज डे की ही थी फिलिंग प्राउड लिखा था । राम लाल सोच रहे थे जाने मेरे जैसे कितनों को लूटकर ये प्राउड महसूस कर रही होगी ।

सीमा “मधुरिमा”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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