आतंकियों के परिवारों की मदद : वोटों की राजनीति

हाल ही एक न्यूज चैनल आईबीएन 7 पर खबर आई कि सरकार आतंकियों के परिजनों की मदद व पुनर्वास करने का निर्णय कर चुकी है और उसे जल्द ही अमली जामा पहना दिया जाएगा। गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने तो खुद इसकी पुष्टि करते हुए योजना की तारीफ की।
यह खबर देख कर मैं सरकार की इस घिनौनी वोट राजनीति पर सिहर उठी कि स्वार्थ की खातिर यह किस हद तक गिर सकती है।
सरकार के ताजा कदम से सवाल उठता है कि इसके विपरीत सन् 1962 के चीन के आक्रमण के बाद पाकिस्तान से 1971, 1975 और फिर कारगिल युद्ध, कितने शहीदों के परिवार के लिए सरकार ने कुछ किया है? देश के न जाने कितने शहीदों ने अपनी मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर किये, उनके परिवारों का आज क्या हाल है, शायद सरकार को ज्ञात नहीं होगा। उनमें से शायद कुछ ही परिवारों को कोई सहायता प्रदान की होगी, बाकी तो आज तक सभी आश्वासन के सहारे जी रहे हैं। उन शहीदों की विधवाएं, माएं या परिवार के सदस्य आज भी सरकार के नियमों, कायदे-कानून के चक्कर में उलझ कर दर-दर की ठोकरें ही खा रहे हैं।
अफसोस कि वही सरकार आज ऐसे आतंकी परिवारों की मदद करने सोच रही है, जिन लोगों ने कश्मीर घाटी में किसी दूसरे देश के कहने पर पूरे हिंदुस्तान की सर जमीं पर आतंक फैलाया और हिंसा की। हमारे निर्दोष लोगों की जान ली।
सच बात तो ये है कि ये सरकार सिर्फ अपने वोट बैंक केलिए किसी भी हद तक गिर सकती है, इस बात का अंदाजा लगाना नामुमकिन है। इसके विपरीत जिन परिवारों के लोगों ने इस देश केलिए अपनी कुरबानी दी, वे आज तक भटक रहे हैं।
ऐसी ही एक बात का मैं यहां उल्लेख जरूर करना चाहूंगी कि हमारे ही अजमेर के एक शहीद, जो कि पहले एमआर थे, लेकिन पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए भारतीय सेना में भर्ती हुए और देश केलिए लड़ते हुए शहीद हो गए। उनकी प्रतिमा लगाने की राज्य सरकर ने घोषणा की, मगर आज भी वह प्रतिमा सरकारी गोदाम में धूल खा रही है। इसका उल्लेख राजस्थान पत्रिका के 16/10/12 के अंक में किया गया है।
इन्हीं के बड़े भाई, जो कि सेना उच्चतम पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, जो की एशिया के पहले आर्मी ऑफिसर थे, जो यूएनओ में शांति मिशन के लिए चयनित हुए थे। इन्होंने सिएरा लीओन में बिना खून-खराबा किये अपने नेतृत्व में आतंकवादियों का आत्म समर्पण करवाया था, जिसके लिए भारत सरकार(कांग्रेस सरकार) ने राजस्थान के निवासी होने के कारण राजस्थान में 25 बीघा जमीन देने की घोषणा की थी, जो कि आज तक नहीं मिली।
ये तो चंद ही उदाहरण हैं। ऐसे न जाने कितने शहीदों के परिवार सरकार की उदासीनता और उपेक्षा झेल रहे होंगे। इस प्रकार के उदाहरणों से ये प्रतीत होता है कि शहीदों और सेना में कार्यरत लोगों का तो अपमान एवं आतंकवादियों का और उनके परिवारों का सम्मान किया जा रहा है।
जरा आप ही सोचिए, क्या यह इस देश केलिए ये सही है?
-वनिता जैमन
भाजपा नेत्री

email-vanita.jaiman@gmail.com

संबंधित वीडियो देखने केलिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए

http://youtu.be/QhwaaKgksok

2 thoughts on “आतंकियों के परिवारों की मदद : वोटों की राजनीति”

  1. app ka lekh purntaya satya hai vanita ji is me upa sarkar ki badmashi hai ki voh samudaye vishesh ko badnam karne ke liye aisi gatiya yojna bana rahi hai jo na kewal nindniye hai balki girdhit hai ,bataye kis muslim sanghatan ne kaha ki ye hona chahiye ya mang ki ho jabardusti thopna aur badnam karna ,hum sab ko mil kar is ki ghor ninda karni chahiye .

Comments are closed.

error: Content is protected !!