तुम्हें समझ पाना मुश्किल होता जा रहा है,
कि जैसे जैसे ये वक्त गुजरता जा रहा है,
तुम अब भी हो बेशकीमती मेरे लिए मगर,
शायद वक्त मेरा अब खत्म होता जा रहा है,
मैं लौटकर आने का वादा तो कर भी सकता हूं,
लेकिन यकीं मेरा तुझ पर डगमगाता जा रहा है।
तू एक बार मुलाकात का बस वादा कर दे तो,
रोक लूं वक्त को जो बहुत तेज फिसलता जा रहा है।
शिकवा न करना मेरे बाद मेरी किसी बात का,
“पाठक” वो मैं ही हूं जो मेरे बाद आ रहा है।
✍त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”