*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
जीने के लिए पीना जरूरी है । कुछ पेय खड़े रहकर पीना फायदेमंद है तो कुछ को बैठकर पीना । किसी पेय को सुबह – सुबह खाली पेट पीने की हिदायत दी जाती है तो कुछ को रात में सोते समय गटक लेना हितकर रहता है । कुछ पेय जीने के लिए , कुछ शौक़िया , कुछ दवा के रूप में , कुछ आदतन तो कुछ समय- असमय कभी भी लिए जा सकते हैं । कुल मिलाकर हर पेय की अपनी – अपनी मर्यादाएं हैं और जहाँ मर्यादाएँ भंग होती है वहाँ बात बिगड़ जाती है ।
मनुहार की शुरुआत पेय से ही होती है । मनुहार अनादिकाल से चली आ रही है । कुछ पेय ग्रहण कर लोग चहक उठते हैं तो कुछ को ग्रहण कर बहक उठते हैं । हर पेय के अपने – अपने रंग है । ज़रूरत है उन रंगों को पहचानने की अन्यथा बदरंग होते भी देर नहीं लगती ।
एक बात और है , मिलावट के इस दौर में अब पेय भी सुरक्षित नहीं है । हाँ , किसी अमीर को तो पीकर मरते हुए नहीं देखा किन्तु ग़रीब को इसका शिकार होते हुए जरूर देखा और सुना है । उपदेश देना तो बाबाओं का काम है । मैं तो बस इतना ही जानता हूँ –
माना कि अपनी- अपनी मज़बूरी है ,
पर ज़हर पीना भी क्या जरूरी है ?

– नटवर पारीक

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