बेटी

बेटी हो बेबस न होना सक्षम बन परवश न होना
दुस्टों का संहार करन को , दुर्गा की मूरत बन जाना
जितने तीर तेरे तरकश में , सबको तुम देखो आजमाना
भाले और त्रिशूल से अपना, दुस्टों को जोहर दिखलाना
रूह कांपे गंदे लोगो की, ऐसा उनको सबक सिखाना
आड़े वक्त आएंगे बेशक , हिम्मत कर हिम्मत न खोना
बेटी हो बेबस न होना सक्षम बन परवश न होना

नेता वेता बातें करते, कुर्सी के लालच पर पलते
बातें खूब बनाते हैं ये, जनता को बहकते हैं ये
इनके ऊपर मुँह मत धोना , इनपे तूं निर्भर न होना
इनके मुँह में शब्द जाल है , इनके दिल में एक चाल है
कैसे अपनी कुर्सी चमके , इनके ऊपर वक्त न खोना
बेटी हो बेबस न होना सक्षम बन परवश न होना

तुम अपने दिल को समझालो, अपना खुद मैदान सम्भालो
झाँसी की तलवार उठालो, झलकारी का साहस पालो
सहयोगी की बात मान कर, धर्म युद्ध में आगे होना
बेटी हो बेबस न होना , सक्षम बन परवश न होना

श्रद्धा हो कविता भी हो तुम , अब चिंगारी तुम बन जाओ
चूड़ी छोडो खडग उठालो , और दुर्योधन को बतलादो
द्रोपती चीर हरण न होगा , बेशक द्रोण मौन लोचेगा
भीष्म भी चुपचाप सहेगा , नारी का न मान गहेगा
अपना युद्ध खुद लड़ना ढोना, बेटी हो बेबस न होना सक्षम बन परवश न होना

डॉ मोहिंदर सिंह फोगाट

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