मिल जाए वो सब जो अब तलक मिला नहीं

त्रिवेन्द्र पाठक
कल सुबह देखा जब मैंने धुप तो थी ही नहीं
लोगों ने भेजे ख़त मुझे कि भोर है नई नई

आ गयी है फिर से एक बार तारीख वही
जो पहले भी जीवन में आई है हर साल नई

आज से पहले भी कितनी बार तारीख बदली है
मुन्तजिर हूँ मैं उसका जो अब तलक बदली नहीं

साल बदला महिना बदला तारीख भी बदल गई
बदलना था जिसे वो तो है बस वही की वही

खुश रहें आप सदा “पाठक” की दुआ है यही
मिल जाए वो सब जो अब तलक मिला नहीं

त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”

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