परिधान यानि वे वस्त्र जिन्हें शरीर पर पहना जाता है । किसी ने सच कहा है “परिधान व्यक्ति को बनाते है” । परिधानों से संस्कार , संस्कृति और अभिरुचि परिलक्षित होती है । परिधान के चयन और उपभोग से आचार- विचार की झलक मिलती है । परिधान व्यक्ति की जीवन- शैली का प्रतिबिंब है अतः परिधान धारण करने से पूर्व थोड़ा मंथन करना जरुरी हो जाता है ।
कई बार परिधानों को लोग अपने अवगुण दबाने के अस्त्र के रूप में काम लेते हैं जो ज्यादा दिन चलने वाली बात नहीं होती है । कहते हैं कि परिधान का मन पर प्रभाव पड़ता है अगर परिधान को धारण कर सकारात्मक प्रभाव पड़े और कोई सुधार की दिशा में अग्रसर हो जाए तो अच्छी बात है । यह भी सत्य है कि यदि कोई परिधान से छल- छद्म करता है तो परिधान उसे नंगा करने में भी देर नहीं करते । अतः सावधानी भी जरुरी है ।
आज पहनावें की चकाचौंध सबको आकर्षित कर रही है । आधुनिकता की अंधी दौड़ में आधे – अधूरे वस्त्र पहनने में भी लोग संकोच नहीं कर रहे हैं । पहनावे का यह अमर्यादित स्वरूप चिंता का विषय है । रुचि के अनुसार वस्त्र पहनना ग़लत नहीं है , हमारा अधिकार है किंतु फ़ैशन के नाम पर आज जो कुछ भी परोसा जा रहा है उस पर थोड़ा अंकुश जरुरी है । कितनी विचित्र बात है कि विदेशों में भारतीय परिधानों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर दौड़ रहें है , उसे अपना रहे हैं । हम समय के साथ चलें किन्तु गौरव- गरिमा का भी ध्यान रखें ।
– नटवर पारीक