एक मच्छर रोज़
एक आदमी के घर आता था
आदमी उसे पकड़ने की कोशिश करता
पर मच्छर भाग जाता था ।
एक दिन उसी मच्छर ने
आदमी को काटा
गुस्से में आकर आदमी ने
मार दिया उसे चाँटा ।
मच्छर वही ढेर हो गया
पट्ठा रोज शेर बनता था
आज आदमी सवा शेर हो गया ।
मच्छर ने तो आदमी को
कहकर काटा
पर आदमी ने तो उसे धोखे से
चटनी की तरह बाँटा ।
शह और मात का खेल
इसी तरह चलता है
आख़िर सबके भीतर
एक शैतान भी तो पलता है ।
– नटवर पारीक