संकट की घड़ी

नटवर विद्यार्थी
माला
हाथ की हो
या गले की
दोनों की ही गरिमा
महती है
ज्ञानी – ध्यानी के
हाथ और गले में ही
शोभा देती है ।
अब ये लोग
है ही कहाँ ?
बगुला भगत ही पसरे हैं
यहाँ – वहाँ ।
मालाएँ इन्हीं के
कब्ज़े में पड़ी है
आज हर भले आदमी
और वस्तु पर
संकट की घड़ी है ।

– नटवर पारीक

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