*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
“पगड़ी” सिर पर बांधा जाने वाला परिधान या पहनावा है । इसकी शुरुआत मौसम की मार से सिर को बचाने के रूप में हुई होगी , धीरे – धीरे सामाजिक परम्परा के साथ – साथ यह आन – बान और सम्मान की प्रतीक बन गई । शिकागो ( अमेरिका ) में आयोजित धर्म – सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद पगड़ी धारण करके ही गए थे जो प्रमुख आकर्षण का केंद्र रही ।
पगड़ी कोई साधारण परिधान नहीं है । पगड़ी के मान की रक्षार्थ तलवारें उठी हैं , धरती ख़ून से रंगी है , हँसते – हँसते लोग दीवारों में चुन गए और फाँसी पर चढ़ गए । राजस्थान का इतिहास तो पगड़ी के मान मर्यादा का जीता – जागता उदाहरण है । तभी तो कहा जाता है –
पगड़ी म्हारी आन है , पगड़ी म्हारी शान ।
दुनिया म सिरमौर है , म्हारो राजस्थान ।।
एक समय था जब व्यापार – दुकान की शुरुआत के लिए पगड़ी को अमानत पर रखा जाता था , धीरे – धीरे पगड़ी का स्थान धन ने ले लिया । पगड़ी सिर पर धारण की जाती है अतः यह एक तरह से इज्ज़त का पर्याय है ।
पगड़ी को लेकर कई मुहावरे और कहावतें चलन में रही है यथा पगड़ी अटकना यानी जिद्द करना ,पगड़ी उछालना यानी अपमानित करना , पगड़ी उतरना यानी अपमानित होना , पगड़ी ढीली होना यानी मायूस होना , पगड़ी बंधना यानी गौरवान्वित होना , पगड़ी बदलना यानी घनिष्ट मित्रता को अपनाना , पगड़ीवार होना यानी जिम्मेदार होना । विविधता में एकता का सन्देश देने वाले इस सिर के मुकुट के गौरव को बनाए रखना हर भारतीय का कर्त्तव्य है ।

– नटवर पारीक

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