गांधी की याद में …

रासबिहारी गौड
*कविता -1*
*गांधी ,देह से इतर*

धाय! धाय!!धाय!!!
करती तीन गोलियां
उतर गई थी सीने में

उनका धुँआ
आज भी सूरज की आंखों में
चुभ रहा है

है! राम
की गूँज
सन्नाटों में
गूंज रही है

कुछ झंडे
कुछ नारें
कुछ मठ
खुश हैं
एक देह पर विजय पाकर

देह से इतर
बहुत कुछ है
जो महक रहा है
माटी में

*गाँधी-2*
*सत्य के प्रयोग*

अगर तुमने की होती
सत्य की प्राप्ति
तो पुज रहे होते
मंदिर, मठ या मस्जिदों में
या फिर खाली खोपड़ियों पर तने होते
झंडे बनकर

लेकिन तुमने किये
सत्य के प्रयोग
तुम्हारी प्रयोगशाला का अकेला रसायन
हमें हमारा पता बताता है

सच तो ये है
तुम्हारा सच
प्रयोग से प्राप्ति का मार्ग
दिखाता है

*गांधी-3*
*हम महफ़ूज हैं*

कुछ खून सने हाथ
अपने अपने झंडों के साथ
हवा में लहरा रहे थे

तुम अपने सधे कदमो से
जमीन की दूरियां नाप रहे थे
हवा का जुनून
माटी के गुरुर को तोड़ना चाहता था

तुम्हारी अधनंगी काया
दोनों के बीच
ढह सी गई थी

लेकिन तुम दीवार बनकर
खड़े रहे
आज भी खड़े हो

हम महफूज है
अपने अपने घरों में

‌ *रास बिहारी गौड़*

*गांधी- 4*
*घड़ी की रफ्तार*

हाँ!
उस दिन कुछ देर हो गई थी
घड़ी की रफ्तार को
पीछे छोड़ते हुए
तेज कदमों से चले थे
अपने अंतिम गन्तव्य की ओर

तुम्हारें कदमों से होड़ लेते लेते
घड़ी की सुइयां थक सी गई थी
थोड़ा विश्राम चाहती थी
सूर्यास्त की गोद मे बैठकर

तुम आगे निकल गए
समय को पीछे छोड़कर

अब नहीं है कोई घड़ी
जो तुम्हारे कदमों को नाप सके
और हमें सही सही समय बता सके

*रास बिहारी गौड़*

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