-आखिर क्या मिलेगा बेगुनाहों की जान से खेल कर
-यदि कोई तकलीफ है तो सरकार से अपनी बात शांति से क्यों नहीं कहते
👉भारत अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का अहिंसावादी देश है और इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। इसके बावजूद दिल्ली #CAA (नागरिकता संशोधन कानून) के विरोध में हिंसा की भेंट चढ़ रहा है। पथराव, आगजनी और हिंसा में दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल राजस्थान के निवासी रतन लाल के प्राण न्यौछावर हो गए हैं और अन्य पुलिस अधिकारी व कर्मचारी घायल हो गए। देश की संसद द्वारा पारित और सरकार द्वारा लागू किसी अधिनियम या कानून से किसी भी वर्ग विशेष या व्यक्ति को कोई आपत्ति है तो वे शांति के साथ सरकार से सीधे बात क्यों नहीं करते। हिंसा ना तो किसी समस्या का समाधान है और ना ही इसका कोई स्थान है। इन दंगाइयों को आखिर किन्हीं बच्चों के सिर से पिता का साया उठाने, किसी महिला की मांग का सिंदूर उजाड़ने, किन्हीं बुजुर्ग माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा छीनने से क्या हासिल होगा। दंगाई यह क्यों नहीं सोचते हैं कि कहीं अगर ऐसा उनके साथ हो गया तो फिर उनके बीवी-बच्चों और बुजुर्ग माता-पिता का क्या होगा। हैड कांस्टेबल रतनलाल के परिजन पर क्या बीत रही होगी, यह सोचकर ही मन कांपने लग जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस हिंसा के पीछे किसी देश विरोधी संगठन का हाथ हो और दंगाइयों को उकसा कर अशांति फैलाई जा रही हो। हालांकि सरकार ने दिल्ली में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया है, जो एकदम सही कदम है। कहते हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं तो उनसे जूते से ही निपटना ज्यादा अच्छा होता है। सरकार को इससे भी ज्यादा कठोरता से दंगाइयों से निपटना ही होगा, ताकि अब कोई पुलिसकर्मी इनका शिकार नहीं हो।
-प्रेम आनन्दकर, अजमेर, राजस्थान।
25/02/2020, मंगलवार।