जान है तो जहान है

हेमंत उपाध्याय
हर बहूमूल्य वस्तु . धन . संपत्ति या व्यक्ति की हर तरह से सुरक्षा व्यवस्था की जाती है । इन सबसे बेशकीमती होता है देश । हमने हमारे देश की सुरक्षा के लिए चारों ओर सीम सुरक्षा बल तैनात किए तो प्रकृति ने हमारे देश की सुरक्षा बढ़ चढ़ कर की । तीन तरफ विशाल सागर दिया तो ऊपर मुकुट के साथ दृड़ प्रहरी हिमालय दिया। नीचे भोजन के लिए समुद्र में पोष्टिक जल के फल दिए ( जल तुरई माने मछली ) तो ऊपर पहाड़ों पर रसीले स्वास्थ्य वर्धक फल व जड़ी बूटियां दी। बीच में हर तरह के फल और प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न दिया। शिक्षा व ग्यान विग्यान के क्षेत्र में आर्य भट्ट व ऋषि मुनि दिए तो आध्यात्म के क्षेत्र में जगदगुरु श्री कृष्ण दिए । विवेकानंद दिए ।किसी भी क्षेत्र में कोई कमी नहीं छोड़ी। नियमित तीन मौसम दिए। एक तरह से देखें तो हम पूर्णतः आत्मनिर्भर हैं। सर्वाधिक सुविधा युक्त देश होने के बावजूद हमें दूसरे की थाली का घी ज्यादा दिखता है और इसी की लालच में हम विदेश भागते हैं। आधी छोड़ आधी को धाये न हाथ पूरी आवे ना आधी आवे मुफ्त में कोरोना लावे। पूरा देश प्राकृतिक सुरक्षा के मजबूत घेरे में होने के बाद भी हम.स्वयं हवाई यात्रा या पानी के जहाज से अपना सामन.अपना हुनर अपनी मेहनत अपना श्रम बेचने जाते हैं। अपने इंजीनियर अपने वैग्यानिक अपने शिक्षा विद सब कोई ऊंचे दाम पाने विदेशी मुद्रा पाने के लिए ज्वार माता की स्वदेशी स्वदिष्ट पाचक रोटी को छोड़कर पोटी रोकने वाले पिट्सजा बर्गर खाते हैं। कुछ हद तक विदेशी सभ्यता के साथ विदेशी बीमारी लाने के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। छोटा अदमी कम जिम्मेदार है तो बड़ा आदमी बड़ा जिम्मेदार है। ऐसी आयतित बिमारियों का दुष्परिणाम देश के गरीब व किसान भोग रहे हैं। मंडी बंद होने से दो तीन माह में तैयार की गई सब्जी भाजियां जानवरों को खिलानी पड़ रही है तो तैयार फसल नहीं कटने से ओलों तले दब रही है । करे कोई भरे कोई। सरकार के द्वारा दी जा रही नौंकरियाँ या मुआवजा ऊंट के मुँह में जीरा जैसा है। जो छोटै उद्योग थोड़ी बहुत नौकरियां देते थे वो काम बंद कर घर बैठ जाएं व उद्योगकर्मियों को घर बैठे खाते में वेतन डालते रहे तो वो उद्योग बीमार उद्योग हो जावेंगे व नौकर ही नहीं मालिक भी निकम्मा हो जावेगा। भारत पहले ही हर वर्ग द्वारा किए गये क्षेत्रवार या आंशिक बंद के नुकसान की भरपाई नहीं कर पाया है । पहली बार देशव्यापी सरकारी बंद पूर्णतः सफल रहा है । आदमी बीमारी से व मरने से बच जाए भले हीं सब उद्योग बीमार हो जाए कर्जदार हो जाए बंद हो जाए। पर मानव जीवन को बचाने में ही बड़ी सफलता है । अभी तक देश में आंशिक बंद से नुकसान ही हुआ है पर इस बार पूर्ण बंद से पूर्ण लाभ की उम्मीद है । वह है जान । बड़े बुजुर्ग सच ही तो कहते हैं ” जान है तो जहान है।” अब हमें व्यवसाय के पहले जान की सोचना चाहिए।
. हेमंत उपाध्याय.
साहित्य कुटीर. पं. राम नारायण उपाध्याय वार्ड क्र 43 खण्डवा म.प्र. 45001
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