तुमने कहा, मैंने सुना
फिर क्यों बजाता है ढोल रे
आहिस्ता- आहिस्ता बोल रे ।
हाँ , हाँ जी हाँ
तू भी यहाँ, मैं भी यहाँ
प्रेम में होता नहीं तोल रे
आहिस्ता-आहिस्ता बोल रे ।
हाँ , हाँ जी हाँ
यह तो बता जाना कहाँ
कहते हैं धरती गोल रे
आहिस्ता-आहिस्ता बोल रे ।
हाँ , हाँ जी हाँ
झगड़े में अब रखा है क्या
वाणी में मिसरी घोल रे
आहिस्ता-आहिस्ता बोल रे ।
– *नटवर पारीक*, डीडवाना