शान-औ-शौकत का जीवंत साक्षी-सरवाड़ का ऐतिहासिक किला

-उज्ज्वल जैन-
सरवाड़ का ऐतिहासिक दुर्ग प्राचीन स्मृतियों का जीवंत साक्षी है । रिसायत काल में राजा – महाराजाओं की अपनी शान-औ-शौकत हुआ करती थी एवम अपने अलग ही राजसी ठाठ-बाट हुआ करती थी, जिसका एक जीवंत उदाहरण सरवाड़ का ऐतिहासिक दुर्ग है । वर्ष 1950 में रियासतों के एकीकरण होने के पूर्व राज्य की अनेक रियासतों का अपना-अपना रूतबा व मान-सम्मान था। इनमें किशनगढ़ रियासत प्रमुख रूप से थी, जिसका गौरवशाली अतीत आज भी वर्तमान पीढ़ी को आलोकित करता है । किशनगढ़ रियासत की एक प्रमुख हुकुमत थी सरवाड़ । जो किशनगढ़ की स्थापना के पूर्व से चली आ रही थी , लेकिन किशनगढ़ के राठौड़ वंशीय राजाओं ने गौड़ शासकों से छीनकर इसे अपने कब्जे में कर ली थी , और तब से ही सरवाड़ किशनगढ़ रियासत का प्रमुख हिस्सा हो गया ।सरवाड़ कस्बा किशनगढ़ रियासत की एक-एक घटना का तो जीवंत साक्षी रहा ही है,साथ ही इससे पूर्व गौड़ शासकों के उत्थान-पतन का नजारा भी इससे अपनी आँखों से देखा है।
सरवाड़ की वर्तमान स्वरूप बसावट का श्रेय गौड़ शासको को जाता है , जो करीब 8 सौ साल पहले बंगाल से अजमेर आये थे ।उस समय अजमेर पर राजा पृथ्वीराज चौहान का शासन था । जानकारी के अनुसार संवत 1205 में राजा बछराज गौड़ अपने भाई बावन गौड़ व अपने अन्य पाँच भाईयों के साथ सरवाड़ क्षेत्र में आये और उन्होंने तात्कालीन समय में सरवाड़, देवलिया व जूनियां में किले बनवायें तथा प्रशासकीय रूप से सुविधा व साधन संपन्न होने पर सरवाड़ को मुख्य केंद्र बनाया । वर्तमान में जिस स्थान पर किला बना हुआ है, उस स्थान के बारे में ये धारणा प्रचलित है कि यहाँ एक बकरी ने अपने बच्चो की पूरी रात सियार से टक्कर लेकर रक्षा की, जिस पर रजा बछराज गौड़ ने इसे वीर-भूमि मानकर इस स्थान पर किले का निर्माण कराया । प्रारम्भ में यह काफी छोटा था,परन्तु बाद में गौड़ शासकों के बाद किशनगढ़ के राठौड़ वंशीय राजाओ ने इसमें काफी निर्माण कराकर इसे विशाल और भव्य स्वरूप प्रदान किया। सरवाड़ का यह किला लगभग 51 बीघा भूमि पर फैला हुआ है और उत्तर भारत के उन गिने चुने किलो में इसका नाम है जहाँ किले के चारों ओर दो-दो नहर बनी हुई है । साथ-साथ विशालकाय दरवाजे,हाकिम व नजीर के महलों, विशाल तहखानों, तोपगाडियों, प्रत्येक बुर्ज पर जंगी तोपों,अस्तबलों और भारी मात्रा में युद्ध सामग्री से युक्त यह किला पूर्णतया सामरिक रूप से बनाया था। आगरे के किले की तर्ज पर यहाँ भी पूरे किले में हजारो के संख्या में तीरकश व खंदक बने हुए है । इस किले को वर्तमान स्वरूप तक लाने में अहम भूमिका किशनगढ़ के संस्थापक महाराज कृष्णसिंह के 10 वें उत्तराधिकारी महाराजा पृथ्वीसिंह की है जिन्होंने किले के भीतर महलों सहित अन्य आवश्यक निर्माण करवायें ।
किशनगढ़ रियासत में विलीन होने से पूर्व पूरा सरवाड़ परगना गौड़ शासकों के अधीन होने के कारण गौड़ापट्टी कहलाती थी। इसी कारण यहाँ जैन मंदिरों के साथ आज भी गौड़ी शब्द आगे लगता है,यथा गौड़ी पार्श्वनाथ ,गौड़ी आदिनाथ मंदिर इत्यादि। किशनगढ़ के अधीन होने के बाद सरवाड़ रियासत किशनगढ़ की प्रमुख हुकुमत बन गई ।ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महाराजा किशनसिंह के बाद 18 अन्य महाराजाओ ने यहाँ शासन किया । महाराजा किशनसिंह मृत्यु के बाद उनका बड़ा पुत्र सह्समल्ल यहाँ की गद्दी पर बैठा।
कुछ समय बाद फतहगढ़ के महाराजा बाघसिंह के तीसरे बेटे भीमसिंह जो कचौलिया के जागीरदार थे ,के छोटे पुत्र पृथ्वीसिंह को रियासत का राजा बनाया गया । इनके शासन में रियासत ने काफी तरक्की की । उस समय पूरी रियासत में छोटे-बड़े क़रीब 30 तालाब बनाये गए ।इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्र शार्दुलसिंह की ताजपोशी की गई ,जिनके बाद मदनसिंह ने संवत 1957 से 1983 तक राजपाट संभाला । उसके बाद यज्ञनारायण सिंह व सुमेरसिंह अंतिम शासक रहे । किशनगढ़ रियासत में आने से पूर्व यहा तक कि गौड़ शासकों के भी पहले से सरवाड़ पर मुस्लिम शासको की नजर रही और समय-समय पर यहाँ आक्रमण भी हुए। 1197 में अजमेर में मेर जाति के दमन के लिए जब मुस्लिम शासक कुतुबद्दीन एबक ने आक्रमण किया तब उसने सरवाड़ के प्रसिद्ध आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई । इसके पश्चात 1627 में पुन:मुस्लिम शासकों ने यहाँ हमला बोला , पर यहाँ के वीरो ने अपनी जान बाजी पर लगा दी और सरवाड़ की रक्षा की ।इसलिए आज भी उनकी शौर्यगाथा जनकंठो का हार बनी हुयी गूंजती है।
पाथल पड़ पीथल पड्यो,अध बीच पद्यो ओनाड़ ।
सीत सारे नही राजा, सर कट्या रही सरवाड़ ।।
पाथल,पीथल और ओनाड़ ये तीनों सगे भाई थे, जिन्होंने युद्ध में अपना रणकौशल दिखाते हुए वीर गति पाई लेकिन सिर कटने के बाद भी इनके धड़ लड़ते रहे, जिससे ये जुन्झार जी कहलाये । इन तीनो के स्थान आज भी किले के चौक में जीर्ण -शीर्ण हालत में बने हुए है।
पर्यटन विभाग की है किले पर नजर
सरवाड़ के किले की ऐतिहासिकता एवम इसके स्वरूप को देखते हुए पर्यटन विभाग की इस किले पर नजर है ।विगत वर्ष पर्यटन विभाग ने इसे नीलाम करने की भी योजना बनायी एवम न्यूनतम राशि 24 ( चौबीस ) करोड़ रूपये रखी गयी । परन्तु इसका कोई खरीददार नही मिला । इसको पर्यटन स्थान बनाने की योजना भी पर्यटन विभाग की है परन्तु यह योजना अभी स्वीकृति के लिए सरकारी कागजो में दबकर बैठी है ।

उज्ज्वल जैन
error: Content is protected !!