हाँ , मैं स्त्री हूँ…

नीता टंडन
हाँ , मैं स्त्री हूँ ,
एक बहु , पत्नी , माँ और शायद एक बेटी भी हूँ ।
मैं शायद खुल के रो नहीं सकती ,
अंतर के दुःख को दिखा नहीं सकती ।
आज इस क़हर में मुझे सम्बल देना है सबको ,
अपने प्यार और ममता का आँचल देना है सबको।
सुबह उठते झाड़ू बर्तन ,नाश्ता-खाना बनाते ,
वर्क एट होम के साथ वर्क फ़्रोम होम करते ।
पति व बुजुर्ग सास ससुर की बिन बोले सेवा करते ,
आँखों के इशारे से समझकर सबकी ख़िदमत करते ।
मौन हूँ ,क्यूँकि अपना कर्तव्य पूरा करना है ,
उन सबकी पीड़ा को हरना है ।
बच्चे दूर शहर में हैं, अपने बसेरों में व
उनकी याद से व्याकुल हो जाती हूँ रात के अंधेरों में ।
आदेश था जो जहां है वहीं रहे ,
शायद यही ठीक था उनके लिए हम सब के लिए ।
पर मन तो घबराता है , एक कमी सी है लगने लगती ,
काश! कलेजे से लगा पाती, यह तमन्ना है जगने लगती ।
यह सच है , मैं हो गई हूँ आजकल अपडेटेट ,
आ गया है मुझे तकनीकी ज्ञान ,हो गई हूँ अपग्रेडेड।
मुझे आ गया है स्काइप, हाउसपार्टी और विडीओ कॉल पर बातें करना ,
दूर बैठे माता -पिता और अपनो के हालचाल लेना ।
पर क्या करूँ यह तकनीकी मुझे अपने लोगों की निकटता का नहीं कराती है अहसास ,
चाहती हूँ मेरे अपने रहें मेरे आस-पास ।
अपने प्रियजनों के साथ बतियाना चाहती हूँ ,
उनके दिल की सुनना और अपनी सुनाना चाहती हूँ ।
याद आती है सखियों की खिलखिलाहट और शोख़ियाँ ,
चिढ़ा रही हैं हैंगर में लटकी अनगिनत साड़ियाँ।
यूट्यूब देख के व्यंजन बनाने में हो गई हूँ होशियार,
सम्भाल रही हूँ घर से दफ़्तर और पूरा घर बार ।
पति के डूबते व्यापार पर, नौकरी में कटते वेतन पर दिलासा देती हूँ ,
“घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा “ कह के ढाँढस बँधाती हूँ ।
लोग कहते हैं लॉकडाउन में हो गई है प्रकृति निर्मल ,
झरनों और नदियों का स्वच्छ पानी बह रहा कल – कल ।
उन्मुक्त गगन में उड़ रहे हैं पक्षी निर्बाध,
हो रहें है जंगल जानवरों की गर्जना से आबाद ।
यह सब कुछ सही है , यह जानती हूँ ,
हमने किया है प्रकृति को बर्बाद , गलती मानती हूँ ।
हे ईश्वर अब बस कर, हमें और ना सजा देना ,
हम समझ गए अब कैसे है हमें जीना ।
वापस से मुझे वो हँसता शहर, देश और संसार चाहिए,
अपनों का प्यार , स्नेह निकटता और उल्लास चाहिए ।
तुझे रब कहूँ , ईश्वर ,ईसा ,ख़ुदा या परमपिता,
पुनः हरा भरा कर दे संसार ओ विधाता।
मैं विनती करूँ , प्रार्थना करूँ दुआ या सज़दा,
हे प्रभु तू हर ले अब हम सबकी पीड़ा।
अब बस कर, अब बस कर , अब बस कर ,
हमें माफ़ कर , हमें माफ़ कर , हमें माफ़ कर ।।

नीता टंडन

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