क्या विवाह के लिए कुंडली मिलान जरूरी है?

कैसे दूर होते हैं कुण्डली के दोष?

राजेन्द्र गुप्ता
भारतीय हिन्दू परिवारों में यह माना जाता है कि लड़के या लड़की के विवाह से पूर्व किसी ज्योतिषी से कुण्डली जरूर मिलवा लेनी चाहिए। ज्यादातर भारतीय हिन्दू परिवार ज्योतिषी के पास अपने पुत्र या पुत्री के विवाह के लिए कुंडली मिलवाने या जन्मपत्रिका मिलान के लिए इसलिए जाते हैं, ताकि विवाहित होने वाला जोड़ा किसी प्रकार के दुर्भाग्य का शिकार न हो, और अपनी जिंदगी हंसी खुशी से काट सके। लोग ये विश्वास रखते हैं कि विवाह के बाद एक दूसरे के भाग्य एवं दुर्भाग्य का असर अपने साथी पर पड़ता है तो क्यों नहीं पहले ही ये जान लिया जाए कि क्या उनका भाग्य आपस में अच्छा तालमेल रखता है। या नहीं, इसलिए ज्योतिष अनुरूप कुण्डली मिलान करके गुण दोष का विवाह पूर्व पता लगाया जाता है।
अद्भुत एवं कठिन कार्य है गुण मिलान
कुण्डली गुण मिलान एक अद्भुत एवं कठिन कार्य है जिसमें कई ज्योतिष संयोग और नियमों को परखा जाता है। गुण मिलान की प्रक्रिया दो तरह से की जा सकती है। केवल प्रचलित नाम के उपयोग से, या जन्मपत्री के द्वारा जो कि जन्म तारीख के आधार पर बनाई जाती हैं। जन्मपत्री में जन्म राशि का उपयोग करके गुण मिलान किया जाता है। अगर किसी की जन्म तारीख पता नहीं हो तो फिर उसके नाम के पहले अक्षर से गुण मिलान करते हैं। ज्यादातर ज्योतिषी अष्टकूट चक्र या अवकहडा चक्र का उपयोग लड़के और लड़की के गुण दोष मिलान के लिए करते हैं।
कुंडली मिलान के माध्यम से वर-वधु की कुंडलियों का आकलन किया जाता है ताकि वह जीवनभर एक-दूसरे के पूरक बने रहें. लेकिन वर्तमान समय में केवल यह देखा जाता है कि यह मेरे लिए फायदेमंद रहेगा या नहींैं। दुनिया भर के प्रश्न व्यक्ति एक ज्योतिषी के समक्ष रख देते हैं जबकि कुण्डली मिलान में वर-वधु का आपसी सामंजस्य, विवाह का मांगलिक सुख तथा आने वाला दशाक्रम देखा जाना चाहिए. लेकिन लगता है कि इन सब बातों को आम व्यक्ति की तरह ज्योतिषी भी शायद भूल गये हैंैं।
कुंडली मिलान को अधिकतर व्यक्ति एक सरसरी निगाह से देखते हैं. उनकी नजर में जितने अधिक गुण मिलते हैं उतने अच्छा होता है जबकि यह पैमाना बिलकुल गलत हैैं। कई बार 36 में से 36 गुण मिलने पर भी वैवाहिक सुख का अभाव रहता है क्योंकि गुण मिलान तो हो गया लेकिन जन्म कुंडली का आंकलन नहीं हुऔं। सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की अपनी कुंडली में वैवाहिक सुख कितना है? तब उसे आगे बढऩा चाहिए।
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आजकल आँख मूंदकर यही देखा है कि गुण कितने मिल रहे हैं और जातक मांगलिक है या नहीं. बस इसके बाद सब कुछ तय हो जाता है. यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो अधिकतर कुंडलियों में गुण मिलान दोषों या मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है अर्थात अधिकतर दोष कैंसिल हो जाते हैं लेकिन इतना समय कौन बर्बाद करें. आइए आपको कुछ दोषों के परिहार के विषय में जानकारी देने का प्रयास करते हैं।

क्या होते हैं दोष?
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कुंडली मिलान के मुख्य दोष इस प्रकार हैं-
गण दोष
यदि किन्हीं जन्म कुंडलियों में गण दोष मौजूद है तब सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें –
चंद्र राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता या राशि स्वामियों के नवांशपति में भिन्नता होने पर भी गणदोष नहीं रहता है।
ग्रहमैत्री और वर-वधु के नक्षत्रों की नाडयि़ों में भिन्नता होने पर भी गणदोष का परिहार होता है। यदि वर-वधु की कुंडली में तारा, वश्य, योनि, ग्रहमैत्री तथा भकूट दोष नहीं हैं तब किसी तरह का दोष नहीं माना जाता है।
भकूट दोष का परिहार-
भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं- जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वादश दोष होता है। इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न-भिन्न प्रकार से हो जाता है।
षडाष्टक परिहार-
यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है।
यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए।
मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए।
यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है।
नव-पंचम का परिहार-
नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है।
यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है।
मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए।
यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है।
द्वि-द्वादश योग का परिहार-
लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है।
द्वि-द्वादश योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है।
मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वादश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
नाड़ी दोष का परिहार-
नाड़ी दोष का कई परिस्थितियों में परिहार हो जाता है-
वर तथा वधु की एक ही राशि हो लेकिन नक्षत्र भिन्न तब इस दोष का परिहार होता है।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चंद्र राशि भिन्न हो तब परिहार होता है।
दोनों का जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन चरण भिन्न हों तब परिहार होता है।
शास्त्रानुसार नाड़ी दोष ब्राह्मणों के लिए, वर्णदोष क्षत्रियों के लिए, गणा दोष वैश्यों के लिए और योनि दोष शूद्र जाति के लिए देखा जाता है।
ज्योतिष चिन्तामणि के अनुसार रोहिणी, मृृगशिरा, आद्र्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर नाड़ी दोष नहीं माना जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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