अपने जोखिम पर ही निकले

ओम माथुर
-जैसे ट्रेनों में लिखा होता है,यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें।
-जैसे बसों में लिखा होता है,जेबकतरों से सावधान।
-वैसे ही अब सरकार को जगह-जगह ये चेतावनी भी लिखा देनी चाहिए की कोरोना से लोग अपनी सरक्षा खुद करे।
-अपने घर से जान जोखिम में डाल अपनी जिम्मेदारी पर निकलें। सरकार बचाव की गारंटी नहीं देती।
-क्योंकि कोरोना जैसे-जैसे बढ रहा है,सरकार और हम वैसे-वैसे लापरवाह होते जा रहे हैं।
– पहले कोरोना फैलने के रास्ते ढूंढ रहा था। अब हम उसके लिए नए-नए रास्ते खोल रहे हैं।
-बसें-ट्रेनें चल रही है। अनाज- सब्जी मंडियां पहले ही खुल चुकी है। राजस्थान सहित कई राज्यों में अब शो रूम,रेस्टोरेंट,मिठाई सहित लगभग सभी दुकानें भी खोल दी गई है। यानि हर वो जगह जहां लोग- एक दूसरे के ज्यादा संपर्क में आएंगे और कोरोना लुभाएंगे, वह शुरू कर दिए गए हैं।
ट्रेनों से लौट रहे प्रवासी श्रमिक और मंडियों में खरीदारी करने आने लोगों से कोराना संक्रमण देश भर में बढ़ रहा है।
-शहरों में तो हम संक्रमण को रोक नहीं पाए। श्रमिकों को गांव भेजकर कोरोना को नया रास्ता दिखा दिया और अब मुख्यमंत्री और दूसरे नेता कह रहे हैं कि गांव में कोरोना को फैलने से रोकना है ।क्या तमाशा है ?
-देश-प्रदेशों में रोजाना अब तक के सबसे ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और हम लोग लाकडाउन को अपने पर बोझ मान रहे हैं।
– दरअसल सरकार शुरुआत से ही उलटबांसी का शिकार रही है। लाकडाउन से पहले श्रमिकों को अपने घर जाने का मौका देने की बजाय ये काम दो लाकडाउन खत्म होने के बाद तीसरे में लि
दिया गया। जब लग रहा था कि देश मे कोरोना प्रसार पर नियंत्रण पाने की कोशिशें कामयाब हो रही है,तो उस पर पानी फेरने वाले फैसले लिए गए। ये पता तो होना चाहिए था कि जब कोरोना के कारण उद्योग धंधे बंद है और रोजी-रोटी का संकट आ गया, तो श्रमिक घर तो लौटना चाहेंगे । जाहिर है अब जब वह तीसरे लॉक डाउन में घर लौट रहे हैं तो कोरोना को रोकने के लिए अब तक हुई तमाम कोशिशें मिट्टी में मिलाते जा रहे हझं।
-लॉक डाउन लागू करने से पहले सभी मुख्यमंत्रियों से राय लेने के बजाय पीएम ने देश भर में इसे एक साथ लागू कर दिया और अब वह मुख्यमंत्रियों से साथ बैठक कर उन्हें कह रहे हैं कि वह खुद तय करे कि उन्हें अपने राज्य में क्या करना है। जबकि ये उन्हें पहले पूछना चाहिए था। क्योंकि तब भी कोरोना हर राज्य में समान रूप से नहीं फैल रहा था और न ही अब ये समानता है। अभी भी कोरोना के 65 प्रतिशत से ज्यादा मरीज केवल 5 राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात ,राजस्थान ,दिल्ली व तमिलनाडु मे हैं। अगर उस वक्त राज्यों को अपने हिसाब से लाक डाउन करने की छूट दी जाती तो शायद कई राज्य अब तक इससे मुक्ति पा सकते थे।
-जिस सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क व सैनिटाइजर के लिए सरकारें जोर-शोर से प्रचार कर रही है। उनकी पालना उसके खुद के अधिकारी और नेता भी बैठकों के दौरान या लोगों से मिलते समय नहीं कर रहे हैं, तो आम जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है ?
-यानि कोरोना को अपने आसपास या साथ मानकर इससे बचने और जीने की आदत आपको और हमको डालनी। सरकारें आपकी जान बचाने के लिए बहुत वक्त गंवा चुकी है। उसे अब अर्थव्यवस्था बचाकर हमें आत्मनिर्भर बनाना है।

ओम माथुर।अजमेर

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