मुस्कराते वक्त्त बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियाँ——-
कभी-कभी किसी को देखकर,उसकी असफलता पर,उसकी बात सुनकर अथवा व्यंगात्मक भाषा में हँसते हुए उनका उपहास या मजाक करना क्रूर हास्य होता है। जिससे वैर और द्वेष बढ़ने की संभावना होने से कषाय का कारण बनता है।दूसरों की हँसी उड़ाना या‘उपहास’करना बहुत ही निम्न श्रेणी का हास्य है। इससे भलाई के बदले बुराई ही हाथ आती है। इससे जिसकी हँसी उड़ाई जाती है कई बार बुरा मानकर लड़ाई तक ठान बैठता है। द्रौपदी की दुर्योधन पर हँसी गयी‘हँसी’ने ही महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध करवा दिया था।‘उपहास’को स्वस्थ हास्य नहीं कहा जा सकता।
जिंदगी का मंत्र
हर हाल में जिंदगी का साथ निभाते चले जाओ, किंतु हर ग़म , हर फ़िक्र को , धुएँ में नही ,हँसी में उडाते जाओ। यदि सच पूछा जाए तो मुनष्य और जानवर में अंतर ही क्या है, सिवा इसके कि मुनष्य हँस सकता है परंतु जानवर हँस नहीं सकता। अर्थात ‘हँसना मानवता का गुण है और न हँसना पशुता है।
डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—–डॉ टी एस दराल, चंचल मल चोर्डिया, मेरी डायरी के पन्ने, विभिन पत्र पत्रिकाएँ