क्या प्रियंका गांधी बचा पाएगी अशोक गहलोत की सरकार

रजनीश रोहिल्ला।
राहुल गांधाी के बाद प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला लेकिन परिणाम सामने नहीं आ रहा है। कांग्रेस से बगावत पर उतरे सचिन पायलट अब राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत को नहीं देखना चाहते हैं।

रजनीश रोहिल्ला
नंबर गेम गहलोत के पास हो या सचिन पायलट के पास। कांग्रेस की जितनी फजीहत होनी थी, हो चुकी है। अब तो गहलोत सरकार का बचना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। सचिन पायलट की बगावत और उसके बाद उनकी खामोशी कह रही है कि पायलट का वर्तमान लक्ष्य गहलोत सरकार को हिलाना है। दूसरे अर्थों में गिराना है। सचिन पायलट वापस लौट भी जाते हैं तो भी कोई गारंटी नहीं कि वो कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी नहीं करेंगे। क्योंकि पायलट और गांधी परिवार के बीच एक दूरी बन चुकी है। गांधी परिवार की मुश्किल यह है कि वो गहलोत या सचिन में से किसी को भी नजर अंदाज करेंगे तो दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस सरकार का जाना तय है।
कांग्रेस के दरवाजे अब भी सचिन के लिए हैं खुले
राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट का अपना एक बड़ा वजूद है। इसे इंकार नहीं किया जा सकता। वो उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष भी है। उनका कांग्रेस से बगावत करना और गहलोत को मुख्यमंत्री से हटाने की शर्त रखना। बहुत ही गंभीर मामला है। खास समय यह और भी अनुशासनहीन हो जाता है, जब वो 15 से अधिक विधायकों को लेकर किसी रिसोर्ट में जाकर बैैठ जाते हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओं के फोन नहीं उठाते। आखिर इसे क्या नाम दिया जा सकता है। यह पार्टी के साथ बगावत है, विश्वास घात से कम नहीं।
राजस्थान को संभालने वाले कंाग्रेस के केंद्रीय नेता जान चुके हैं कि उनकी कोशिशें पूरी तरह फेल हो चुकी हैं।इसलिए अब गांधी परिवार की ओर देखा जा रहा है।
लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इतने बड़े घटनाक्रम को अंजात देने वाले पायलट अब पूरी तरह संदेह के घेरे में आ चुके हैं। खासतौर से उन खबरोें पर गौर किया जाए कि वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी से मिलकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई और भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं।
भाजपा के राष्टीय नेता और राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया कि राजनीति में लोग सत्ता के लिए ही आते हैं, बीजेपी को मौका मिलेगा तो सरकार बनाएंगे। वहीं बीजेपी प्रदेशअध्यक्ष सतीश पूनिया के बयान को भी समझ लिजिए। पूनिया नने कहा कि गहलोत सरकार का जाना तय है।
यानि जिस तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया के बीच की लड़ाई का भाजपा ने पूरा फायदा उठाकर शिवराज की सरकार बनाई। राजस्थान में भी ठीक उसी तरह का परिदृश्य बन चुका है।
इस्तीफों तक ही अटकी है बात
सारी बात बगावत कर चुके सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के इस्तीफे होने तक ही अटकी पड़ी है। एक बार इस्तीफा हुआ तो फिर इस राजनीतिक फिल्म में भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष जेपी नडडा और अमित शाह की एंटी हो जाएगी।
कांग्रेस क्यों कर रही है पायलट के आगे मनुहार
पिछले 48 घंटों के घटनाक्रमों पर नजर डालें तो कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व पायलट के खिलाफ कोई भी अनुशासनहीनता से जुड़ा कदम नहीं उठा पा रहा है। मुख्यमंत्री के निवास पर हुई बैठक से पहले कहा गया था कि जो भी विधायक नहीं आएगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देर शाम तक पायलट और उनके समर्थक विधायकों का इंतजार किया गया। फिर मंगलवार को एक बार फिर से विधायक दल की बैठक बुला ली गई। इसमें पायलट को लाने के हर संभव प्रयास करते कांग्रेस नेता नजर आ रहे हैं।
कहीं अशोक गहलोत के पास सरकार बचाने का पूरा नंबर गेम तो नहीं है, पायलट की माने तो गहलोत के पास केवल 84 विधायक हैं। वहीं सोमवार को हुई बैठक में दावा तो 109 विधायकांे का किया गया लेकिन माना जा रहा है कि 95 विधायक ही थे। इनमें भी निर्दलीय और बसपा से आए विधायक थे। जबकि कांग्रेस के पास सब मिलाकर 123 विधायकों का आंकड़ा है। आंकड़ों के हिसाब से तो बड़ा लोचा है।
पायलट आ भी गए, तो भरोसा कैसे बनेगा
गहलोत सरकार को अस्थिर करने जैसा इतना बड़ा कदम उठाने वाले सचिन पायलट किसी फार्मूले के तहत वाापस आ भी जाते हैं तो आखिरकार उन पपर भरोसा कैसे कायम होगा। इस बात का कांग्रेस नेता कैसे भरोसा करेंगे कि वो आकर अपनी विधायक संख्या को नहीं बढाएंगे या फिर केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव नहीं बनाकर रखेंगे। ऐसे ही कई सवाल जवाब तलाश रहे हैं।
राज्य के काम काज पर सीधा असर
मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच चल रहे शक्ति परीक्षण का सीधा असर राज्य के काम काज पर पड़ रहा है। जहां एक और उपमुख्यमंत्री सरकार को अस्थिर करने में लग रहे हैं, वहीं दूसरी और मुख्यमंत्री सरकार को बचाने की जुगत कर रहे हैं। ऐसे में राज्य के काम काज का बंटाधार हो रहा है। ऐसे मौके पर अक्सर प्रशासनिक अधिकारियों की पौ बारह हो जाती है। यही समय ऐसा होता है, जब प्रशासन अपने आपको पूरी तरह मुक्त स्वच्छंद महसूस करने लग जाता है।
पर्दे के पीछे पटकथा लिख रही है बीजेपी
जैसा कि मुख्यमंत्री बार-बार कहते रहे हैं कि बीजेपी राजस्थान सरकार को अस्थिर करने में लग रही है, विधायकों के खरीद फरोख्त के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के मुंह से यह नहीं निकल रहा कि हमारे घर की फूट का लाभ लेने में बीजेपी जुटी है। असल में बीेजेपी वही कर रही है, जो एक प्रतिद्ववंदी रराजनीतिक दल को करना चाहिए। पार्टी कोई भी हो उसके विरोधी खेमे की फूट का राजनीतिक लाभ जरूर उठाएगी। अगर कांग्रेस में सबकुछ सही चल रहा होता तो बीजेपी कुछ भी कर पाने की स्थिति में ही नहीं है। लेकिन जब कांग्रेस के घर का भेदी ही घर से बाहर जाएगा तो विरोधी खेमा तो उसे टटोलेगा।
तीन चर्चाओं से बाजार गर्म
सियासी घटनाक्रम के बीच पायलट को लेकर तीन चर्चा प्रमुख रूप से चल रही है।
पहली – पायलट किसी फार्मूले के साथ वापस सम्मानजनक तरीके से कांग्रेस के साथ आएंगे। जिसकी उम्मीद नही ंके बाराबर हैं। क्योंकि पायलट कह चुके हैं, कि वो गहलोत को मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठना देखना चाहते। उनके समर्थक एक विधायक ने इतना तक कह दिया कि कांग्रेस में निष्ठा का मतलब गहलोत में निष्ठा नहीं है। वहीं एक मंत्री ने कहा कि वो पायलट के साथ हैं।
दूसरी – पायलट बीजेपी के साथ चले जाएंगे। जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया चले गए। राज्यसभा से सांसद बने और अब मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल हो जाएंगे। उनके साथ आए विधायक भी शिवराज सरकार में न सिर्फ मंत्रीमंडल में शामिल हुए बल्कि महत्वपूर्ण विभागों से भी नवाजा गया।
तीसरा – पायलट राजस्थाान में अपना कोई नया क्षेत्रीय दल खड़ा करके तीसरा मोर्चा तैयार करें। हालांकि इस तरह की खबरें भी आईं लेकिन ज्याादा समय तक अस्तित्व में नहीं रही।
तीसरे सीएम का फार्मूला
पायलट गहलोत को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते तो स्वाभाविक है कि गहलोत भी पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। ऐसे में इन दोनों के अलावा किसी तीसरे सीएम के नाम पर सहमति के प्रयास हो सकते हैं। लेकिन अशोक गहलोत कभी भी ऐसा नहीं होने देंगे।
गहलोत सरकार का जाना तय
अगर पायलट को मनाने की हर कोशिश नाकाम रही तो अशोक गहलोत सरकार का जाना तय है। सिर्फ अशोक गहलोत ही नहीं बल्कि कांग्रेस से भी फिर कोई और सीएम नहीं बन पाएगा। क्योंकि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में बीजेपी खुद सरकार बनाने का प्रयास करेगी।

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