रजनीश रोहिल्ला।
सिने जगत के महानायक अमिताभ बच्चन पर फिल्माएं गए गायक शब्बीर कुमार का ये गाना 80 के दशक में सुपर हिट हुआ था।
गाने के बोल आज भी सुपरहिट हैं। ना तून सिंग्नल देखा, ना मैने सिंग्नल देखा। एक्सीडेंट हो गया, परमानेंट हो गया। रब्बा-रब्बा।
कई बार ना चाहते हुए भी एक्सीडेंट हो जाता है। सारा दोष महत्वकांशा के मौसम का भी हो सकता है। कई बार खतरे दिखाई भी नहीं पड़ते।
राजस्थान की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही हो गया। कांग्रेस में गहलोत और पायलट जब दोनों मिलकर जनता के बीच जाकर कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए वोट मांग रहे थे, तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि डेढ़ ही साल में पूरा बहुमत होने के बाद भी हालात ऐसे बन जाएंगे कि कांग्रेस सरकार पर खतरा मंडरा जाएगा।
उपमुख्यमंत्री की कुर्सी जा चुकी है। अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर गणित का जोड़-भाग चल रहा है। गहलोत और पायलट के बीच वर्चस्व की लड़ाई का मामला पुलिस, कोर्ट, विधानसभा और जनता के बीच कई सवालों के साथ खड़ा है।
राजस्थान की जनता ने देने में कोई कमी नहीं की। इतना तो दे ही दिया कि 5 साल सरकार आसानी से चल सके लेकिन, करें तो करें क्या। कांग्रेस की किस्मत को ही जैसे ग्रहण लग गया है। चार राज्यों में सरकारें हाथ से निकल गई। अब राजस्थान में भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
घर मेें बैठकर बात हो सकती थी, लेकिन लड़ाई घर से बाहर होगी तो लोग तो मजे लेंगे ही। अब गहलोत और पायलट दोनों का गुमान दोनों के लिए नुकसान दायक होता नजर आ रहा है। पायलट की राजनीति का तो भविष्य ही इस समय खतरे से भरा नजर आ रहा है। वहीं गहलोत भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहे।
हाईकोर्ट के फैसले पर नजरें टिकी है। फैसला जिसके भी पक्ष में आए, सामने आ जाएगा। लेकिन उससे पहले यह साफ हो गया है कि सचिन पायलट के साथ-साथ गहलोत सरकार पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
जैसा कि दावा किया जा रहा है कि गहलोत के पास सरकार का नंबर गेम पूरा है, तो भी गहलोत सरकार की स्थिरता को लेकर प्रश्नचिन्ह तो बना रहेगा।
बीेजेपी ने साफ कह दिया है कि कांग्रेस के घमासान पर उनकी पूरी नजर बनी हुई है, समय और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय किए जाएंगे। मध्य प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच घर की लड़ाई के बाद भाजपा बता चुकी है कि वो क्या करने की क्षमता रखती है। हालांकि सवाल वहां भी बहुत बने हुए हैं, लेकिन एक बार के लिए तो कांग्रेस का तख्ता पलट हो ही चुका है।
राजस्थान में क्या। कहा जा रहा है कि एमपी और राजस्थान की राजनीतिक परिस्थितियां भिन्न है। यह बात पूरी तरह सही नहीं लगती। वहां भी सारा खेल नंबर गेम का था और यहां भी नंबर गेम पर ही टिका है।
अगर पायलट को कोर्ट से राहत मिल गई तो विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान नेक टू नेक फाइट वाला मुकाबला होगा। यानि 1 से 3 नंबर के बीच में सरकार का फैसला हो सकता है। अगर, ऐसा होता है तो गहलोत सरकार पर बहुमत साबित करने के बाद भी खतरा हमेशा मंडराता रहेगा।
हाईकोर्ट भी आखिरी निर्णायक नहीं, सुप्रीम कोर्ट तक जाने की चर्चाएं चल रही हैं। यानि मामला इतना आसानी से सुलझने वाला नहीं है।
दोनों खेमों के बीच चल रहे शह-मात के खेल में दोनों ही एक प्लान के बाद दूसरा प्लान तैयार करके बैठे हैं। जानकारी आ रही है कि गहलोत विधानसभा का संक्षिप्त सत्र बुलाने की तैयारी कर रहे हैं। सवाल उठता है, इसकी क्या जरूरत है। जानकार कह रहे हैं कि यदि पायलट को कोर्ट से राहत मिली तो उनके साथ 18 विधायकों की विधायकी बरकरार रहेगी।
ऐसे में कांग्रेस एक बार फिर विधायकों की बैठक करने के लिए विहप जारी करेगी। इसमें अगर पायलट खेमा नहीं पहुंचा तो विहप का उल्ल्घंन मामले में बैठक में नहीं पहुंचने वालों विधायकों की विधायकी समाप्त हो जाएगी।
यानि अभी राजनीतिक दांव पेच काफी बाकी हैं। नंबर गेम के हिसाब से पूरी पिक्चर में एक बात साफ है, पायलट के पास हर हाल में 30 विधायक होने जरूरी है, अगर ऐसा नहीं है तो वो राजनीति के जादूगर से निर्णायक मोेर्चे पर हार जाएंगे।
सब्बीर कुमार के इस गाने की लाइने कि ना तूने सिंग्नल देखा, ना मैने सिंग्नल देखा के आखिरी अंतरे में एक लाइन और बहुत महत्वपूर्ण थी कि मौसम की भी नियत खराब थी, अरे नुकसान सारा तो भरना पड़ेगा। ना तूून खतरा देखा, ना मैने खतरा देखा। एक्सीडेंट हो गया, परमानेंट हो गया। रब्बा-रब्बा।