घर में रहता हूं ….!!

तारकेश कुमार ओझा
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बाल – बच्चों को निहारता हूं , लेकिन आंखें मिलाने से कतराता हूं .
डरता हूं , थर्राता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .

बिना किए अपराध बोध से भरे हैं सब
इस अंधियारी रात की सुबह होगी कब .
मन की किताब पर नफे – नुकसान का हिसाब लगाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .

सामने आई थाली के निवाले किसी तरह हलक से नीचे उतारता हूं .
डरता हूं , घबराता हूं , पर सुनहरे ख्वाब से दिल को भरमाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। संपर्कः 9434453934, 9635221463

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